धो रही थी। इतने ही में गङ्गाधर बाबू ने जाय कर उसे जल में गेर दिया, और दृढ़ पकड़ लिया, जब तब वह जल में नहीं डूबी, तब तक नहीं छोड़ा। मैंने उन्हें जल से निकलकर जाते देखा था, परन्तु इस बात के कहने में तब कौन विश्वास करता। कल प्रात:काल गङ्गाधर बाबू की मृत्यु हो गई। मृत्यु के समय वह मुझे बचा गये, और वह भी सुना है कि इनकी यह सब बातें हस्पताल के साहब ने लिखकर आपके जिला के मजिष्ट्रेट साहब के पास लिख भेजा है। सुतराम् अब मैं मुक्त हूँ। आपके घर में अब फिर नहीं आऊँगी। और क्या करने को ही आऊँगी अब वह नवीन नहीं है, किसके संग जी खोल कर बातें करूँगी? गङ्गाधर बाबू ने कहा था कि आपकी सास की परलोक प्राप्ति हो गई है, सुतराम् अब किसको रामायण पढ़कर सुनाऊँगी? मैं आपके घर फिर नहीं पाऊँगी, किन्तु आप से भगिनी के समान प्रीति रखती हूँ यह आप जाने। बड़े बाबू जब कलकत्ते आवै शिवनाथ ठाकुर के घर मेरे साथ साक्षात् करने को कह देना, आप के लड़कों के लिये कुछ वस्तु भी दूंगी।
मैं आपलोगों की दया प्राण रहते नहीं भूल सकती। कहने से क्या है? आपकी स्वर्गवासिनी सास ने मेरी प्राण रक्षा की थी। वह यदि मुझे गङ्गातीर से उठायकर न ले