पृष्ठ:बिरजा.djvu/३७

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आती तो मैं उसी रात्रि को पञ्चत्व पाती। किन्तु मेरी मृत्युही भली थी। आज आठ वर्ष से स्वामी का उद्देश नहीं मिला, वह क्या नौका डूबने के समय मर गये? तो विधाता ने मुझे किस विवेचना से बचा रक्खा है? बोध होता है वह वहां नहीं मरे नौका के एक बङ्गाली मांझी ने कहा था कि मैं तुम्हारी प्राणरक्षा करूँगा। जीजी मेरा मन कहता है कि वह अभी बचे हुये हैं। सुशील के बाप से कहना कि यदि विपिनविहारी चक्रवर्ती नामक किसी पुरुष का सन्धान पावै तो उससे मेरा विवरण कहें। जीजी अब पत्र शेष करती हैं।

"मैं वही बिरजा"

पत्र एक बार दो बार तीन बार पढ़ा गया तीन बार के पीछे पत्र उपधान पर रखकर बाबू ने एक दीर्घनिश्वास परित्याग किया किसी किसी पुरुष का यह स्वभाव होता है कि एक गुरुतर विषय उपस्थित होने पर बहुत क्षण बहुत दिन आगा पीछा विवेचना करते हैं, भविष्यत सोचते हैं। किन्तु ऐसे लोग प्रायः किसी विषय में भी कृतकार्य नहीं होते। हम जिन बाबू की बात कर रहे हैं यह ऐसे स्वभाव के लोग नहीं थे, इन्होंने एक बार में ही कर्तव्य स्थिर कर लिया, उठकर कमीज पहिर कर दुपट्टा और लकड़ी लेकर घर के बाहर हुये और पत्र साथ लिया।