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अष्टमाध्याय।

आशा के आश्वास मात्र पर जो मिलन इतने दिनों से बिलम्बित था, वह दम्पती का मिलन बहुत दिन पीछे युगान्त में गंभीर निशीथ में कैसे सुख की सामग्री है। शिवनाथ बाबू के द्वितल हर्म्य में आज वह गंभीर आनन्दमय मिलन है। बिरजा बिपिनविहारी के पदप्रान्त में रो रही है, और निशीथिनी लाख लाख आँख खोलकर वही देख रही है, विपिनबिहारी उदासीन की भांति स्पन्दरहित, स्वरहित, दण्डायमान हैं। जिसने पूर्ण चरितार्थता लाभ की है, वह उदासीन है। पूर्णता में आज विपिनविहारी उदासीन हैं।

सहृदय शिवनाथ बाबू निरर्थक शब्द करके एक घर से दूसरे घर में चले गये, तब विपिन और बिरजा को बोध हुआ, और समझा कि इस संसार में इस प्रकार का मिलन अनन्त काल स्थायी नहीं है, और क्रम से यह भी नाना कि एक बार दोनों को दोनों का परिचय लेना आवश्यक है।

बिरजा प्रथम बोली कि "आपने किस प्रकार जाना कि मैं यहां हूँ?" यह कहकर इतने क्षण पीछे उसने आंख पोंछने की चेष्टा की, परन्तु फिर वेग से जल भर आया और मन मन में कहने लगी कि 'हाय! क्या मेरे कपाल