पृष्ठ:बिरजा.djvu/४५

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बिरजा को हृदय प्रान्त में खींचकर लगा लिया और कहा "साध्वि! तुम क्यों अनुशीचना करती हो? पवित्रहृदया अबला प्रदीप्त पावकशिखा होती है। जो प्रेम की अवमानना करके पतंग के समान उसमें कूदकर गिरैगा वह उसी भांति जल कर मर जायगा। और नवीन की सारल्यमयी प्रतिमूर्ति जो तुम्हारे चित्त में चिर दिन अंकित रहेगी और वह जो अनेक समयही तुम्हें दग्ध करैगी यह मैं विलक्षण जान सक्ता हूँ। अबला कोमलप्राणा कुसुमकोमला है, इसी में अबला का सुख और इसी के अबला का दुःख और इसी में अबला का गौरव और इसी में अबला की यन्त्रणा है'।

समाप्त।