पृष्ठ:बिरहवारीश माधवानलकामकंदला.djvu/१०१

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। बिहबारीशमाधवानलकामकंदलाचरित्रभाषा । ७३ मनमथ यह निजबाम मिलेआय संयोगते ।। दरशनहीलौं प्रीत परसनही हियलौभयो। शिशुताजानसभीत नृपतिबालवेधी नहीं। माधो पहुंचोआय मजलिसमुजरातीसरे । आपयोग सुखपाय मारग सितपंचमी तिथि ।। हवाहवेली बीच सुवरणलखि सुवरणसहित । मचतसुगंधनकीचचित्रनिहारविचित्रजित ।। सुरपुरवारोंबाग फुलवारी पखारने । वापै अंग तड़ाग मध्य महलमें महल निजु॥ छं अरि ०। जरित दुलीचनभूमि जड़ित सब सोहती। तनी रावटी पेसजरी जर जोहती ।। तहँ प्रयंक को तौरन और वखा- निये । नखतनयुतनखतेशमरीचीमानिये ॥ दो० लोकरीति आतिथ्यकरि प्रीतिरीतिवितजाउ। ले बैठे निजसेजमें दरशावो रतिभाव ॥ सो. माधव मृगपति जानकाम कंदलापदिमिनी । कीन्हीरति उनमान निशापंचमीपाय तिथि ॥ होतशरद ऋतुमाहिं चारेऊपरकीटइक । दईकंदला काहिखैरौरीताफैनकी ।। छं०समु०। बीराविपके करखात।तियके कँपेयर २ गात ॥ ऊग्यो अंग अंग अनंग । समझो कोककोयहअंग ।। दो• स्वेद कंपरोमांचसुर अश्रुपात भात । प्रलय बेबरनभंग सुर तन तोरत अलसात ॥ प्रगट होत पियपरशतें येलक्षण तियअंग। निरखि कंदला देहते माधव चाह्योरंग ॥ छ०सुमु । तियकी गही पियनेबाहातबतियकही नाही मोकोंदरदहहै मित्त । ऐसी मानिये नहिं चित्त उलटीवाल । माधोगलगडोत्योंहाल ॥ज्यों करते त्यों बढत द्विज हियकाम । नाहीं कहत बारम्बार । 90