पृष्ठ:बिरहवारीश माधवानलकामकंदला.djvu/१००

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

७२ विरहवारीशमाधवानलकामकंदलाचरित्रभाषा। सायत अधीन संसारसब दृष्टवानउनमान मति । वह कर्मरेख लिखीसोई सत्य अदिष्टगति ॥ दो० उद्यमसों अरु कर्मसों एके भेदलखात । सोसुनगरुड़ उलूककी कथालोकविख्यात ॥ चौ० उत्तरकोतजि आयो दक्षिण । परनामिटो कर्मकोलक्षण। हरिगिरिधरको उरधरिलीन्हों। राज समाज बिन तजि दीन्हों। तापीछे कंदला प्रवीनी। तासु बिदा राजाने कीनी॥ सो समीप माधो के आई। अपनी दासी सों फुर माई ।। दो० ताहि पठायोकंदलाजाकोचिन्दानाम । तूं कहमाधो विप्रसों चलोहमारेधाम ।। माधोबचन॥ छद्रुवि० सुनकंदलापरवीन। इहिभाल विधिलिखिदीन । दुखकोटिसुखको नास । तौ लहौं कहासुबासाहौँ उनकेआधीन। आयो इतैपरवीन ॥ यह क्रूर कर्मकराल । इनही कियो यह हाल ॥ इतभईनापतियेह। तुबदरशपरशसनेह ।। यद्यपि न पाप ति और । तुवदरशसुखशिरमौर ।। सो० प्रापतियदपिकुसंग तदपि सुसंगन छोड़िये। भयो मराल तन भंग कौआ की संगति करी॥ दो उचितनरहबोदेशयहसुचितनरहबो बाल । लेहिराखको काहितबकोपकरैक्षितिपाल । कंदला ॥ भूलना। भयत्याग मोहित लागि कै अनुराग प्रीतिसुचित्त। ममओहमें बड़िनेहमें सूखदेह देह मित्त ॥ तिरंग प्रेमप्रसंग राग उमंग नितप्रति गाइये । यकसेजमौन मजेजिमें रसलेज पुं- जबहाइये ॥तुवपा पाव प्रयागसे सेऊसदाकरिप्रेम । तनुवारने मनुवारने धनवारने इमिनेम । गुणग्रेहके बरणेकहे सुनबचन सहित विवेक।। द्विजचल्यो ताके धामको भजिरामको तजिटेक।। सो. आई अपने धाम द्विजको लैकै कंदला।