पृष्ठ:बिरहवारीश माधवानलकामकंदला.djvu/१०६

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बिरहबारीशमाधवानलकामकंदलाचरित्रभाषा । मोहियापाइ येहं॥ करैताबिया फाबिया पीउ काहीं। रजायों मजा केलि के और नाहीं ॥ करै कोटसींवा गरीबी बतावै। सुनेते उन्हें माधवा चैन पावै ।। करैजोर झकझोर उलछार जंधै । लगे वा- लके चार आंशू उलंघे ॥ हिलकके फिलकके नहीं होत शांती। किलकके पियाचाह भयलाज माती ॥ दचकै मचकै घनै शोर चारो। मही डोल सोंरावटी में निहारो॥ परो प्रेमसंग्राम कोतो बखान। करै शोर पायल्लघायल्ल माने । सो. लखि मुक्ता छवि धाम सकल सेज फैले फिरै। मनौ चाहि संग्राम पुहुपवृष्टि देवनकरी ।। दो० तरल तरंगिनि तरुनकी पै यतरति के ठौर सुनत भानसंसार में अमृत झूठो और ॥ दंडक । कहूकह्यो अमृत कवित्तनके निवेदनमें कबिन बतायो प्रेमगान में लसतु है। प्रेम गान अमृत बतायो फनिन्दह के फ निप बतायो छपाकरमें बसतु है ।। छपाकरवतायो अमृत साधुन की संगति में साधुन बतायो बेदऋचा दरसतु है । बेदऋचा अ- मृत बतायो हमें बुद्धिसेन तरुणी की तरल तरंगन बसतु है । उ- नतउरोजन में दृगनसरोजन में भौंहन के वोजन में मंदमुस- क्यान में । रसना दशनहू में कंचुकी कसनहू में अंजन रसनहू में बेनी सुखदान में ॥ बेंदी के मसकबे में नाहीं के कसकबे में- रोस के ससकवे में रसकी रिसान में । भूले कोऊ अंतही बताव त है बुद्धिसेन अमृत बसतहै बिशेष नवलान में ॥ रसहीन जा- न्यो जुवा पर सौ जहूरापाइ छाती और नजर के नेजा जो न ही लये । भये न दिवाने थोड़ी मुरन मुसक्यान हमें कंचुकी क सन कुच कौर सोनहीं हये ॥ बोधा कवि बारनबधे न छूटै छूटी लाज कसक कसे नाहीं सीखी सो नहीं नये। नेह प्राण प्यारीकै निहाखो देह गेह ऐसो तो इश्क ना जानो तो मानुष वृथाभये ।। चौ० रहतकंदला के घरमाहीं। द्वादश दिन बीते तिहिकाहीं॥ सर्वस सुख सनेह परि पूरण । मनभयो इश्क पंथ परचूरण ॥