पृष्ठ:बिरहवारीश माधवानलकामकंदला.djvu/१०७

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विरहवारीशमाधवानलकामकंदलाचरित्रभाषा। ७९ खूबी को बरणे कबि येती। मिली विप्र माधव को जेती ॥ धनवो गुन वो रूपनिकाई । मनवांच्छित माधोनल पाई ।। पै यह होनहार हो जैसी। सुधबुध देत जीव को तैसी ॥ नृपकी भय माधोनल माने । निश्चैप्रीति न निश्चलजाने ॥ दो० जुदी सेज युवती तहां जो द्विज द्रोही कोइ । हुक्म न माने भूपको तो अनायास दुखहोइ ।। जो कदापि राजा सुनै यह मेरो विरतंत । तौविशेष मरने पर मोको कछु न तंत ।। काम सेन रूसो इतै उतगोबिंद भूपाल । इतहि न मिलसी कंदला उत लीलावति बाल ॥ सो० देहीते सबहोय नेह ग्रेह सुखनेह पुनि । अपने हाथ न कोय यद्यपि नहिं तनापने ॥ भूलना। तबउमांग माधव कंदला सोकही चित की चाह । पर देश को दीन्हीं विदाइहि देशके नरनाह ॥ यहखबर मेरीपा वहीं तौ सिगर होहिं अकाजाकबहुंन कीजै जानके जिय जानहा रइलाज ॥ जग जियत रहिहाँ फेरिरेहौं भाव दी तुवपास । तुव- आश जौलौ स्वास मोतन होन मित्त उदास ॥ यहसुनत पिय रीभई प्यारीपरी पियरी गात । दृगउठत भरि२ चलत ढरि २ मुख न पावत बात ।। गिरिपरी ढाढ़े दरदबा रही गर लिपटाय । क धार देखो नारिकाकी नारिका न लखाय ।। तवमाधवा उरशं किकै भरिअंक लीन्हीं बाल । शरमिंदगी उर आनकीन्हीं रिं दगी ततकाल ॥ दो० मेरोमन माणिक बिक्यो प्यारी तुव गुण हाट । में कीन्हीं तोसों हँसी तकत करी निराट ॥ सो० हे दिलवर सुनबात निज जिय की युवती कही। पिय विदेश कहँ जात ते पशुजे सुनिकै जियत॥ बोधा धक वह जीव जो प्रीतम विछरत जियत । विछुरत देखे पीव ऐसे हगफूटे भले ॥