पृष्ठ:बिरहवारीश माधवानलकामकंदला.djvu/१११

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विरहवारीशमाधवानलकामकंदलाचरित्रभाषा। ३ छंद भुजंगी। चिट्ठी बांचिकै भूमि सों लाय शीशं। कही मा धवा २ बारवीशं ॥ हनै हाथ छाती समाती न श्वाशं । रहे पिंडमें प्राण होके निराशं । कढयो कादिन क्यों मढ्यो दुःख मोही। हितू साथ क्यों नाकढ़े प्राणदोही ।। भई बज्रकी क्यों फटनाहिं छाती । अजों माधवा प्रेम अनुराग माती । अहेपापिनी नीदि या मोहिं भोई । भई सौतिया मोतिया काहि सोई ।। बिरह सिंधुमें बूड़यो गोत खाई । घरीएकलौं फेर श्वासा न आई ।। छंदमोतीदाम गिरी मुर्छा लहिकेजववाल । फिरी अँखियाँ पुतरी तत्काल | करै सखियां सिगरी मिलिशोर । फिरें घर आंगन दौरतपौर ॥ लखें पनि नारिय २ श्राय । कहें नहिं रंच क चेत लखाय ॥ कहूंयह बैदन भेद विचार । सेजपर निकट न देखो यार ॥ हकीमन हौनकही निरधार । मिलै जबलौं नहिं भा वनमूर ॥ नजाय विथा तबलौं तजि दूर । करी दिज माधवने- भलि प्रीति । बड़ेवटपारन तें घटरीति ।। दो० माधौनल को नाम सुनि जगी कंदलानार । गई फेर गिरिसेज पैलख्यो न माधौ यार ।। छंदत्रोटक । माधौ कहि बालगिरी जबहीं। काभयो सखिया न कही तबहीं ।। याको उपचार कहा करिये।याके संगहीमिलि सिगरी मरिये ॥ चौ० तबनारिन यों उपचारठयो। अपने २ करवीण लयो । कहिमाधवा २ गानकियो । तवहीं उठि कामिनि ज्यावदियो-।। अबकित माधव प्रीतमपाऊं। केहिमिलि विरह दवागि बुझाऊं ॥ कहै कोविन्दा सुन सुकुमारी । कसिकै प्राण राखि इहि बारी ।। तेरे हित माधौ इत ऐहै । मुये कहां माधौ को पहै. ।। यहसुनि फिरबोली सुकुमारी । मोको कियो माधवा कारी ॥ सो नैयानेह चढ़ाय झेली इश्कपयोधि में । मांझधार छुटकाय गयो सनेही माधवा ॥ दो. कहे कोबिन्दा सुन सखी अब जिनहोउ उदास ।