पृष्ठ:बिरहवारीश माधवानलकामकंदला.djvu/११२

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विरहवारीशमाधवानलकामकंदलाचरित्रभाषा । हौं माधौको लायहाँ बारएक तुवपास ॥ इतिश्रीमाधवानलकामकंदलाचरित्रभाषाविरहीसुभानसम्बादे कामावतिखंडेसोलहवांतरङ्गः १६॥ इश्ककपोस्तनाम अथ उज्जैनखंडे ॥ सत्रहवांतरङ्ग प्रारंभः॥ दो० पुरी त्यागि कामावती काम कंदलाबाल । पश्चिम दिशिमाधो चल्यो बिरहज्वलित बेहाल । तोतासों माधोकही जोतू मेरायार। सोसातौ अंदर रह्यो हौं बन करत विहार ।। कामनृपतिकी त्रास कामनृपति राम । कामनृपति के त्रास तजि काम कंदला बाम ॥ छंदपधारिका । सुनहे प्रवीन प्रीतमसुजान । मम हृदयभयो दुखको निधान । दिशिजेहि चल्यो सुख चित्त चाय । तितदर द सनेही मिलताय ॥ यो भयो बीन औगुनउपाय । जित जां व तहां लागत बलाय ॥ जोतजौं बीण तौ म अाज । करछुव- त होत जगमें अकाज ॥ मनुजदेह बसिभूमि ऐन । सुख सुन्यो श्रवण देख्योंन नैन ॥ विधि लिख्यो कहामरे लिलाट । सबज न्मरिंग्यो नितनईवाट ॥ दश चारपढ़ी विद्याप्रवीन । तेभई वी. ण अवगुण मलीन ॥ अब सुख सनेह सूझत न मित्र । हो अंत काल इक्षित निवित्र ॥ गिरि चढौंगिरौं बूडौं पयोधि । मरजान मित्रके लाग शोधि । ज्योंइश्क त्यागि जीवहुँसुजान।तो दुई भांति जगमें गलान॥ दो निमिष इश्करामूजपर वारौं सुरति सुराज । इश्क बीचशिर नादयो जगसो जियो अकाज ॥ स. चांदनी सेजजरीकी जरी तकिया अरु गेंडुभा देखिरि साती। रातीहरीपियरी लगीझालरें केसरधरी विरीनहिं खाती॥