पृष्ठ:बिरहवारीश माधवानलकामकंदला.djvu/११४

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८६ बिरहवारीशमाधवानलकामकंदलाचरित्रभाषा। दो० हौहूं जो देख्यो नहीं करसब जगत निबाह । गुणी माधवा विप्र सो विक्रम सों नर नाह ।। कबहुँक हरहूके मिले रहै कर्म गुणपीर । पैन रहै विक्रम मिलेदुख को आश शरीर ।। चौ. जगमें द्विज द्रोही हो कोई ।बचै न तासह हरिकिनहाई ॥ बचै अदृष्टिदृष्टि नहिं आवै । कासों भिरैन देखनपावै ।। दै २ दीरघ दान अचेते। करै अनिच्छविप्रजग जेते ॥ इच्छा विन परदोह न होई । भूखै पाय करत सबकोई ।। दो० जाराजाके राजमें द्विज चोरी करखात । ताके पुरिखाकोटिलों चलेनरकको जात ॥ बाइसचूकें विप्रकीमाफ कहत संसार । नृपति विक्रमादित्यके द्विज की माफहजार ।। चौ० तुम गुणवंत भूपबरदायक । विक्रम तोकहँ होय सहायक।। निष्कलंकविक्रम क्षितिधारी। तेरो दरदगरदकरिडारी ॥ सो. सुनि प्रवीण के बैन माधव मनमोहितभयो। चलन कह्यो उज्जैन आशगुम विक्रम उतै ।। ० भजत राधिकामाधवै चल्यो माधवा जाय। चकित भयो दिश चारते चेत चपेटो प्राय ॥ दंडक । मारण मंत्र पढ़े भ्रमिराजन आवतहै बिरहीनके पा ते।कूक उठी कोयलीकलख ये मनौ ऋतुराज के बाणससातै ॥ बोधा नये २ मंत्रनये लखि चैत चमूकी ध्वजा फहराते । भूलेड लास विलास सबै तबफूले पलासलखे चहुंघातै ।। बांधे हैं सुभट अमलनके माथे मौर भ्रमर समूह मिलि मारूराग गायोरे । को किला नकीव नये पत्रन तें पताक तंबू चन्द्रिका निहारि क्षिति मंडल में छायोरे ॥ बोधा कवि पवन दमामो दीवहरात सुमन सुगंधसोई सुयश बगरायोरे । विरहीसमाज बधिवेकेकाज लाज त्यागि साज ऋतु राज रातिराज पठवायोरे ॥ चौ• यह आफत बसंत ऋतु तैसी। भांति २ मोहिभई अनैसी। दो.