पृष्ठ:बिरहवारीश माधवानलकामकंदला.djvu/११९

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चिरहबारीशमाधवानलकामकंदलाचरित्रभाषा । तूमोहिं मिल्यो धनंतर जैसे । अबमें जानदेहुं कहि कैसे । दो तोहिंपायमें प्रानसो पायो सुवासुजान । अबयाअपनी जबाँसे कबहुंकहौं ना जान ॥ कहै सुबासुनुकंदला जिन रोकै मोकाहिं । मैंलेपाऊँ विप्रको यामें संश यनाहिं ।। चौ चिट्ठीलिखन लगीपियकाहीं। करकंपतसुधि आवतनाहीं॥ कसिकरलिखी मित्रको पाती । दीहश्वासतन में नसमाती ॥ सो. तुवगुणमानिकचाहि बूडी इश्कपयोधिमें। करते गयो हिराय धन रह्यो धारागई ॥ स० सांकरलौ बरुनी कसिकै अंशुमानभईतसवीर करराखे । डोरेरहै बनसे सुरङ्ग तहां कफनी पल टारिकेछावै ॥बोधा निबुद्धि हों मौनरहै मगमाधवा साधवा को अभिलाखै । त्यागिके भोग संयोग सबैरहीं योगिनीहोय बियोगिनी आंखै॥ सो० मनध्यावत है तोहिं हग लागे तुबबाटमें। मदन दहतहै मोहिं तनपचि लाग्योखाटमें । वरवा । परिगई प्रीति भँवरमें जांजर नाव । इहि विरियाँ मोहिं केवट पार लगाव ॥ यहदिल की दिलगिरी लखतुन आन । के दिलजानै आपनो की दिलवर दिलजान ॥ विरहबारिवादी न- दिया चली तुराय । मोरो नवो जीवन विखाउखरि न जाय ॥ चौ० पाती लिख कंदला प्रवीनी। बांधि गरे शुकके वह दीनी ।। बहुतक खबरि जवानीगाई। करि प्रणाम शुक चल्यो उड़ाई ॥ दो० दिनाचार मारग रिंग्यो बीचन टिक्यो प्रवीन । पंचमदिन माधवा को आय दंडवत कीन । शुक को आवो देखि कै शुक सों बूभयो चित्र। क्षेम क्षेम कंदल' की खबरि सुनावो क्षिप्र॥ छंद मोतीदाम । कथ्यो शुक माधौ सों तब येह । रही अतिजी रन हो तिय देह ॥ हरी पियरी सियरी दै जान । बिना जियकी पल माहिं बखान ।। करै उपचार विचार अनेक । लगै नहिंरोग