पृष्ठ:बिरहवारीश माधवानलकामकंदला.djvu/१३५

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। बिरहबारीशमाधवानलकामकंदलाचरित्रभाषा। १०७ दक्षिण दरवाजे नृपपैठा। देखातहांजगाती बैठा । गठरी लखी भूपको लीन्हे । पकरि बाह तिन ठाढ़े कीन्हे ॥ तब नृप कयो बाणिक हमनाहीं। नहीं लोन यहि गठरी माहीं॥ हम हकीम बर वैद्य सयाने । औषध भाति २ की जाने । पुरिया एक खाख तिहि माहीं । नृपरस कह्यो जगाती काहीं॥ दो चलिनृप आयो शहर में कामकंदला द्वार। सत बैद्यनतें सरस अति कीन्हीं तहां पुकार ॥ सुनत कंदला की जनी वैद्यै आई लैन । गइ लिवाय निज महल में जहां बसत मृग नैन । चौ. चलहकीममहलनमेंआयो। दरशनता बनिताकोपायो । उत्तम उच्च बैठका दीना। नृपतापर बैठो पासीना ।। देखत नृपति कंदला काहीं । भयो चकित ताही क्षण माहीं॥ कसना माधौ इहि वश होई। ऐसी तिया और नहिं कोई ॥ कहें हकीम हाथ मोहिं दीजै। नारी लखि उपाय सोइ कीजै ।। दो. नारी की नाड़ी लखी कपट सहित महराज । पुनि तासों लाग्यो कहन रोग समाज इलाज ॥ छंदमोतीदाम । घरीकिन माहिं हरी है जात । परी पियरीप लमाहि लखात ॥ घरी सियरी अतिदीरघ श्वास । नहीं तियके करमें विश्वास ॥ नहीं कफपित्त सुबात बखान । नहीं अश्लेष हिये असजान॥ नहीं तनरक्त विकार लखाय । नहींतियके तन प्रेतबलाय ॥ लगी नहिं डीठन मूठसँयोग। परैलखि नाहिं अ- पूरबरोग ॥ नहीं यह बेदन बेदन देख । कही लुकमान हकीम विशेख ॥ दो. पित्त दाह को प्रथमहीं पित्त पापरो ऐन । दूजे निंबुआ तीसरे दाख कही सुख दैन । शशि बदनी के बदन सोरहिये बदनलगाय। तिके विके पित्तके पल में देव ठंढाय ॥ दो० पुहकर मूली सोंठि पुनि मिरच कटाई आनि।