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पृष्ठ:बिरहवारीश माधवानलकामकंदला.djvu/१३६

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१०८ विरहवारीशमाधवानलकामकंदलाचरित्रभाषा। याकाढ़े ते होत है कफ के ज्वर की हानि ।। इसे कौक ठीका करै अकुटीलौंग मिलाय । दिन दै गोलीखाय तो कफखांसी हटि जाय ।। अधकच जीरेलीजिये आधे भंजे लेय । मलै सरसुवां अंगसों बातज्वर तजि देय ॥ मधुपीपर सेवे सदा नित संयमसों खाय । मास एक में तासुको विषमज्वर नशिजाय । कहीअजीरण रोग को अजवायन अरुलौन। निरगुंडी गटान बात को कहीबकायन तौन॥ सन्निपात पर यों कह्यो काढ्यो सुंठी आदि। कै चिन्तामणि रस करै सन्निपात कहँ बादि ।। कह्यो धना पाचक भलो संग्रहणी परजोर । अतीसार पर रस करै आनँद भैरों तोर ॥ चौ. रक्त विकारी गोंच लगावै । प्रेत काज पंदहा भरावै॥ बहुनायक तें गरमीहोई । चोपचिनी नाशक तेहिसोई॥ दो• बहुत रोग औषध बहुत नाड़ी गुण समुदाय । प्रथम कयो है बैदको चलै सगुन शुभपाय ॥ छंदसुमुखी । अद्भुतरोग तिय के अंग । जाको समुझपरत नारंग ॥ सहस इकलखे रोगी सोय । ऐसो गोगिया नहिंकोय॥ यासों बूझिये यह बात । तेरेकौन और पिरात ॥ तोको होतकैसी पीर। दिलकी कही सोधरि धीर ।। कंदलावचन स. काहसों कहा कहिवोसुनियो कवि बोधा कहेते कहागुण पावन । जोई है सोई है नीकी बदी मुखसे निकसे उपहास ब- दावन ॥ याही ते काहू जनैये न बीर लहै हितकी पै कहै नहिं दावन । जीरण जामा की पीर हकीम जी जानत हैं हमकै मन भावन। चौ० तबहकीमबोल्योमृदुबानी। प्रज्ञा पीर अबहौं पहिचानी॥