११. विरहबारीशमाधवानलकामकंदलाचरित्रभाषा। वरषअवध कीन्हीं द्विजद्रोही । अबको प्रान मिलावै वोही ॥ दो० नयाकिशोर वीणा लिये केसर मुकुटतन गौर कामकंदला बालको माधौनल चित चोर ।। सो. रति पति धरिनर देह किधौंपाय तियको छल्यो। कहां पाइये तेह बेरी पूरवजन्मको। चौ. सुनत बचन नृपयहै विचारी। धन्यमाधवा धनियहनारी॥ अस सनेह कस होय न लोनो। समदायक लायक ये दोनो॥ चाहे नृपति प्रतिज्ञा लीन्हा । तिहि मारका उद्यम कीन्हा ।। कह्यो सत्य वह माधवकाहीं। देख्यो में उजैनि पुरमाहीं॥ बीण लिये बाउरी रखावे । केसर खौरि सो भाल बनावै ।। लकुटरंगीन पीतपट धोती। पगनपांउड़ी कानन मोती॥ मुक्तमाल सेली गल देखी । फूलहार अरु त्रगुण विशेखी। द्वैगजरा दोनों कर माहीं। दोनों दुवो भांति के आहीं॥ अति दुर्बल तन विरहसतायो । कछुक अजारऔर तिहिपायो॥ अववह विप्रजियत है नाहीं । त्याग्योतन उजैन पुरमाहीं॥ दो. बैद्यवचन हिय अति कठिन लागे कुलिश समान ॥ हाय मित्र माधवा कहि तजे कंदला प्रान । निज कुबुद्धि कर धनुष गहि शरसी'जवांचलाय । हरिणी सी बनिता हनी विक्रम बीण बजाय ।। दो सारङ्ग । मरी निहार कंदला हरी २ नरेश कीन्ह । गयो नशाय चौकचाय हौबिसाह पाप लीन्ह ।। लगी सो कौन बुद्धि मोहिंवोहि ज्वाब देव कौन । हरीन पीर होकरी भई न लोक माहिं जौन ॥ सो० मुई लखी जब बाम हाहाकार पुकारके। सखियां गिरींतमाम कहि बिरंचि का निर्मई। होनहार को ख्याल यम भयो यतन हकीमको उठ्यो ढालतेकाल कहौ भोट दीजै कहा। तोटकछंद । हाहाकहि शोरसखीनकरयो। कहूपल एकन-
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