बिरहबारीशमाधवानलकामकंदलाचरित्रभाषा। १०९ बिरह रोग जाके हिय जानो। जीवत मुयो ताहि पहिचानो ॥ तियकी सखिन अर्जयहकीन्हीं। है यह पीरसत्य तुमचीन्हीं॥ अब इलाज याको कछु कीजै । प्राण दान सर्वस किनदीजै॥ बैदवचन दंडक । सिरवी को जाखो जियसिंहको विदारयो जियै बरछी को मारयो जियै वाको भेद पाइये । गरलको खायो जियै नीर- को बहायो जिये औषधी पिवाइये । सांपहू को काटो जियै य महूं को डाटो जियै मौतहू को बोधा जियै यतनस्ताइये । वैद्य- होविधाता जो उपाय करै बोधा कवि नैनन को मारयो कहाँ के से के जिवाइये। सो. सुनि हकीम के बैन फिर बूझी तिय कोविंदा। क्यों पावै चित चैन विरह भुवंगम के डसे वैद्यवचन छंद सुमुखी । बिरहीन जीवै कोइ । जीवै अजर रोगी होइ ॥ के पुनि कर योग बिशेख। के उन्माद पूरण देख ॥ चित में रही येही मित्त । हाअब कहां पाऊं मित्त ।। कबहुंकजिये रोगीजीव । जीवहि पावही निज पीव ॥ सो. जिहितन विरहबलाय सो पानीकैसे जियें जीवै प्रीतम पाय यों उपाय या रोग को। सखीवचन चौ. अहोवैद्ययात्रियकोभावन। छलबलसोंसमरथजिमिबावन । वैश किशोर विप्रअति सुन्दर । लहिराजसु जनु आय पुरंदर ।। गुणी मांझ अस गुणी न कोई । प्रागे भयो न अब फिरहोई ॥ गुण वशकाम सैनकहँ कीन्हा । द्विजको देश निकारा दीन्हा॥ अति विहाल पाला भइ तबहीं । देख्यो द्विजैजातमग जवहीं ।। काम कंदला प्रीतम काहीं। राख्यो एकपक्ष घरमाहीं॥ दिज अपने मनमें यहजाने । मोपर भूप गुसा अति ठाने । सोवत तजि सो गयो सनेही । देश उजैन सुन्यो भवतेही॥
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