पृष्ठ:बिरहवारीश माधवानलकामकंदला.djvu/१४३

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विरहवारीशमाधवानलकामकंदलाचरित्रभाषा। ११५ वान॥दयघृतसों पर कुंडभराय । धरोनृपमाधी कोतनल्याय ।। करेस्नान त्रिवेनियनीर । दयेदिजदेवन दानगंभीर ॥ दो० इतनेक्षण में विप्रइकबयकिशोर बुधिमान । शिरफिकार अस्नानकरि चढ्योचितापरआन । चौ. ताहिदेखि नर बुझतऐसी। चिताचढ़ततुम सोगतिकैसी॥ माधौहेत मरीवहनारी । माधौतियके हेतविचारी ॥ सुयशहेत राजातनत्यागत । मरनतुम्हार अचंभवलागत ॥ तबतिनविप्रकही तिनसेती । मेरीसुनो बारताजेती॥ सो. प्रातविप्र मुखदेख भूमिपावप्रभु नेधास्यो। सोईदृष्टि प्रतिलेख उठ्योमोर मुखदेखनप ॥ कुलसिकाज यहकाज महाराज विक्रमकियो। पूरणभयो अकाज मोरेमुखको दोषयह ।। लटीभये कछुवात प्रकटभये संसारसब। रेउठि भाजप्रभात कौनदुष्टको मुखलह्यो। मोआननसम आनआनन धृकनहिं भानको। जाकेदेखहान भईनपतिको प्रानकी॥ चौ० अवयहमुख लायेवनियावै । फिरनाका हानिदिखावै ॥ तबजवाब चितिपतिहीदीन्हों। वृथाशोचदिजवर तुमकीन्हों । दो० वेदथके विधिहरिथके शंकरथकेबिशेख । महाअपूरन कालगति तिनहुंपरी नहिंदेख ॥ कालपुरुषने ख्यालयह फेरिरच्यो तिहिकाल । चिताठत महराजके आयगयोबेताल । दूतीकेपरपंचते हत्योनिका खोताहि । पाननते प्यारो अधिक हितू भूपकोआय॥ पूरवताको शेशसुत बरदीन्हों यहऐन । जितसुरेश पहुंचैतिते देहि चित्तकोचैन । प्रानजात नरनाथके सोबर आयोकाम। हनूमान वैतालज्यों दिजनृप लक्ष्मणराम ॥