पृष्ठ:बिरहवारीश माधवानलकामकंदला.djvu/१४५

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बिरहवारीशमाधवानलकामकंदलाचरित्रभाषा। १९७ कहनदरदघटत जबजान्यो। मखेकोउपाय तिहिठान्यो। सुवाप्रवीन माधवा पास । तिहि यह दईविप्रको भास ॥ कहीप्रवीन माधवा सेती । तेरी विष विपति कहकेती। नृप विक्रम शकबंधी जानो। नग्रउजैन तासुको थानो। गजके काज गरुड़ध्वज जैसे। सो परपीर हरन को ऐसे ॥ ताको चलनिज दरद सुनावो। पारचिरह बारिधि को पावो॥ दो० दीनबंधु विक्रम नृपति पर पीरा सुन कान । सुखी करै कै तासु सँग तुरतहि करै पयान ।। चौ. ० यह बिरतंत विप्र सुनिपायो। तब चलि के उज्जैने प्रायो। अपनो दरद दिलंदर केरा। शिव मठमा लिख्योतिहिवेरा। होबांच्यों कारण पहिचाना। तिहि क्षण यहै महा हठ ठाना। अन्नपान में जबहीं करिहौं । विरही नलको दुख जबहरिहौं। दूती खोज बिन को लाई । मोसों भाय मिलाप कराई। मैंबड़ आदर बिजको कीन्हा । श्रासन निज सिंहासन दीन्हा।। पुनिबोल्योंदिजसोंप्रतिवानी। कहिद्विज अपनी पीर कहानी। तेरो दरद हरों में अवहीं । अन्न पान पाऊं में ताहीं ॥ यह सुन माधो दरद बखानो। तब मैं सुन उपाय यह ठानो॥ बुलवाई हजार दै नारी । नवयौवन सुन्दर सुकुमारी ।। पुनि माधौ सों यह फर माई । ढूंढलेव बाला मनभाई। गढ़ ग्वालियर रजायसु लीजै । एक कंदला को तज दीजै ॥ माधौ नल एकहु नहिं माने । मोसों तर्क अनेक बखाने । तब मैं तुरत खांखरा दीन्हो । गवन देश कामावति कीन्हो॥ दो० पुष्पवती के बाग में डेरा कीन्हों आय । हौं अायों तेरे भवन बैद सुभेष बनाय ॥ परचेकाज तोसों छलकीन्हों। तें तन ताही क्षण तज दीन्हों। तुवमाधौ को खबरिसुनाई । मस्यो विप्र कळु बारन लाई ॥ अयश होत जान्यो जग माहीं । होहूं मरन लग्यो तिहि ठाहीं॥ चिता चढ़त बैताल सिधायो। तिहि माधों को प्रान जिवायो।