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पृष्ठ:बिरहवारीश माधवानलकामकंदला.djvu/१५०

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१२२ विरहबारीशमाधवानलकामकंदलाचरित्रभाषा । भूलगर्व जिनरख्यहिय । ममकामसैन मुखचुप रहयेतीबढ़ कि- मिभाषाहिय ।। बैतालवचन चौ० बारायोजनके विस्तार । परयोलाख बाइस असवार ॥ एक २ क्षत्रीरणधीरा । योजनभरफटकारततीरा ॥ हाथीसात बेधसोजाई । कौनओटकर बचिहौराई ।। बिक्रमकोदल जीतैकोई । शिवबिरांच हरहूकिनहोई ॥ रसमेंदेहु कंदलाबाला। बरसनाकरिये क्षितिपाला॥ बेरसभये होयनहिनीकी । राजजायअरु आफतजीकी॥ राजाबचन चौ० पर्वतउड़े पंखजोलाई । तरवरचहै धराधरखाई ॥ पश्चिमबहे गंगकोनीर । कामसैनहट तजैनबीर ॥ (बैतालबचन) चौ० अचलचले चलरहेथिराय । पर्वतपरै उदधिमेंजाय ॥ कसुमेरु धरैनहिंधीर । विक्रमजब फटकारैतीर ।। उमानाथ श्रासनसेचलें । धरासहित धाराधरहलें ॥ दृगदंती करिहँचिकार । जवविक्रमकरि हैं हथियार ॥ राजावचन छप्पय । अहेबीर बैताल भट्टझूठी जनभाखै। जबहोंगहौं कृपा- नकौनभट धीरजराखै ॥बन र केतुम होहु फिरौहथियारदुकावत। मांगिनको औखादकहांतू गालबजावत ॥ लखिबीनतोह रण केजुरैदूत कहावड़ उच्चरे । उठिजायवेगशठमाणले विनाकाजजि. नहठकरै ॥ दो० डरतलोक उपहासको भिक्षुक हततनकोय । अहेदूत उठजाय किन प्राणहान जिनहोय ।। बैतालवचन छप्पय । जादिनमरै बैतालतादिन गौरीसतछंडहिं । जादिन मरवैताल रुधिरधारा सवझपहि ॥ मरजाहिं भूपभूमिपर जिते