पृष्ठ:बिरहवारीश माधवानलकामकंदला.djvu/१५६

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

१२८ बिरहवारीशमाधवानलकामकंदलाचरित्रभाषा। ग्रीषम अंतपमारकी भाजीसाजी होय ॥ त्रोटकछन्द । तबयोरनजोर पमारकही। अबहींयह जान परीस- वही । तुवदोजकमाह पमारपरै । कितोहफारि शिकारकरै ।। दो• वहमैढा जिनजानतू रांधखात सवगा। मैंवहमैदा मल्लहौंपेट फारिकढिजा॥ होतनसदृश पमारको एकजनै कोसाग । एकमेंडमें होतहें प्राधे दलकोभाग ॥ मैढ़ाकी ठोकरलगै वर पीपरथहरात । केतिकवात पमारतू उखरखुगिसों जात ।। सुनिर मैदामल्ल के वचन गर्वगंभीर। रणगाजी बाजीचढ्यो कम्पमार सुधीर ।। छंदपद्धरिका । गहिखङ्गखेत दाबोपमार । भयवृष्टसृष्ट परसार धार ॥ चौहानबीर मंगलउदंड । नृपकाम सैनदलमेंप्रचंड ॥ अ. तिकोप करनपर जुरयोआप । तिहिहन्यो बीरअनुरुद्धराय ॥बच गयौफेर चौहानबीर । अनुरुद्धगौड़ उरहन्योतीर ॥ जूझ्योप्रचंड वगौड़तब्ब । रंजोरगह्यो करखड्गजब ॥ वहओखीर मङ्गलस- मर्थ । रंजोरसिंह सोकीन्हहत्य ॥ कटिगयोबीर चौहानधोय। त- बजुत्योदुंद अतिक्रोधहोय ॥ अतिसवलजान चौहानबीर । इहि ओरकर्न पमारधीर ॥ तेलड़ेप्रथम कमानबान । पुनिशैलशक्ति गहिकेकृपान ॥ दोनोंसमर्थ साँवतप्रचंड । जिनमल्लयुद्ध कीन्हों उदंडापुनिकरकटार गहियुद्ध कीन्ह । इकबेरहौत नत्यागदीन्ह।। दुलकट्योसबबाइस हजार । तरफेरखेत हांस्योपमार ।। चौ० इतहिबीररंजोर प्रचारयो । उतहिमल्ल मैदाललकारयो । खलबलभयो दुहूंदलभारी । किलककीन्ह पशुपतिनेतारी॥ छंदमोतीदाम । सरासरशैल घनेसरसंत । झराझरशोणित बूंदपरंत।।खड़ाखड़होतखड्गनजोर।घडाघड़ढालढलकिनशोर॥ भटाभटमुंड बजैरनबीच । मचीसनियामिष शोनितकीच ॥ न- चैरणभूमि पिशाचियजोर । पिये घट शोणित खप्परफोर ।।