पृष्ठ:बिरहवारीश माधवानलकामकंदला.djvu/१६९

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विरहबारीशमाधवानलकामकंदलाचरित्रभाषा। १४१ मेघन दूत सुनो मैं कोई । सावधान बिरही किन होई॥ इतिश्रीमाधवानलकामकंदलाचरित्रभाषाबिरहीसुभानसम्बादे श्रृंगारखंडेछब्बीसवांतरङ्गः २६ ।। इश्क बराम नाम॥ सत्ताईसवां तरंगप्रारम्भः॥ (कुँवार) सो. उघृत आश्विन भूप प्रमुदितकोविद कोकनह । जल थल नीत अनूप बंछित सुरनर नाग जिहि ॥ छंद पद्धारिका । जल अमल कमल प्रफुल्लित विशेखि । तल अमल बुद्धि आकाश देखि ॥ यह शरदसुखद सबकाल अाय । मोहिं ज्वाल माल विन पियास ॥ सो० अहे सुनो ब्रजनाथ बिन सँयोग प्रियनाथ के । लखि अद्भुत यहगाथ शरद चांदनी देत दुख ॥ चौ० फूले कास कुसुमबहुताई । जनुबरषा सहलईस बुढ़ाई ।। घटै द्रब्य दातालखि जैसे । बिन भावन बिरही तिय तैसे ।। छंद भुजङ्गी । अहे यूथ भौंरानके जोर धावै। जिसी ओरजावै मजाखूबपावै ॥ भये मत्त नौनीलता नेह कीन्हे । घने फूलफु वा रयो पाय लीन्हे ॥ त्रोटक छन्द । जलहू थलफूल भईसो भई । यहफूल मयन्दन के उनई ॥ ऋतु शीतल २ पवन चलै । निशि रूप लखै अब. कूफ हलै ॥ दो० सबगुण सुखदायक सुकवि शरद निशानवनारि । हसित लसतसी शाशमुखी गोरी शील उदार ॥ सो० सुनसुमुखी यहपीर लेत देत बीराजगत। मोहिन बीराबीर खानो विन माधो मिलै । (कार्तिक) चौकार्तिक अमलमासजगजानता नरनारीहरिसोंहितमानत।।