पृष्ठ:बिरहवारीश माधवानलकामकंदला.djvu/१७०

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१४२ बिरहबारीशमाधवानलकामकंदलाचरित्रभाषा। मोहिं न हरिके हित सुख होई । मेरो हरि माधव नल कोई ॥ छन्द झूलना। प्यारीप्यारेपीउ की नारी भरीअनुराग । पूजा करै हरिदेवं की जल देवती बड़भाग॥ चर्चेसुचन्दन चारुअंग- नफूल हारसुवेशाधोती सुउज्ज्वलही हरै छुटे मेचककेश ॥गावै बजावै तारियां बोल हैं हरेहरिखूब । इहिमास मोहिं उदास करि गयो माधवा महबूब ॥ देवें दिया अाकाश को गृह बारदीपक- पूर। गावै सुदीपक रागवालासजै भूषण भूर ।। खेले जुवाजाइ बनावे देव गोधनधार । मदमत्त नाचै खालिया करत लरतप- चार । करिअन्नकूट विशाल देव उठायनर नारीय । साजै सुगौ- न विवाह मंगल गाय गनगारीय ॥ वह देख आनँद मूल सब जग शूल मोहिय जान । देखे बिना दिज माधवा क्यों लीजि- ये सुख मान॥ (मार्गमास) सो लाग्यो मारगमास जग ते भायो उस्मदल । जलथल शीत प्रकास भारेसम बिरहिन भवन ॥ यहमारग यहशीत मोहिं आन होतो रुचिर। होतो माधो मीत हियरे परराहियहार ज्यों। चौ• यहविरंचिकीलखि चतुराई । दिलवरनरन दरदअधिकाई॥ माधव से महिरम नर काहीं। वन विहार बस्ती घरनाहीं॥ नाहकनर उपहास बढ़ावै । गुन समुद्र को स्वादन पावै ॥ नाहक नृपति निकारादीन्हा । हिय हवालकरहे लाउनकीन्हा॥ सातदीप की दीपत जो है। सोतो माधो नल कहँ सोहै ।। ताकहँ छाहँ न शीतल पानी। राजसाजकी कौन कहानी ॥ याते विधि अविवे की देखा। रांगा रूपासम कर लेखा ॥ दूजे जग के नर अज्ञानी । तिन माधोकी प्रिभित जानी॥ मूरख सभा चतु रनर कैसे । बगुलन माहिं हंसलखि जैसे ॥ यातें बग मूरख छलछा । हंस सुजान रहन नहिं पावै॥ औगुन कथन कामका कीन्हा। मारग मास छोड़तिहि दीन्हा॥