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पृष्ठ:बिरहवारीश माधवानलकामकंदला.djvu/१७५

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। विरहवारीशमाधवानलकामकंदलाचरित्रभाषा। ताके चरणझवाँले झाऊं । अन्हवाऊं अरुतेल लगाऊं। सजौं शृंगार सेज बैठारों। अपने कर विजना तेहि द्वारों ॥ रुचि वीरा रुचिर खवाऊं। पानी पिवों हुकुम जब पाऊं ॥ ताते नाथझेल नहिं कीजै । मेरोएकरार सुनलीजै ॥ दो जो पुहुपावति पुरी में बीती दिज पर आय । कहीकंदला बाल पै सत्यर सो गाय ।। सो सुनि चलतिय कंदला मनमहँकारणानि। निकट विक्रमादित्यके कही दीन है बानि ।। छंदद्रुबिला। हौंदीनबंधु भुपाल । सुतवित्र गोगोपाल ॥ पर दुःख काटनहार । रघुवंश समऔतार ॥ तुब प्रमित पारा वार। सो बिदित सब संसार ॥ इकरखंड मंडमहीप । तुब सुयश सातो द्वीप ॥ चिरंजीवविक्रम राज । गो दीन द्विज के काज॥धर्मपुत्र पांडव को गावै। स्वाद सस्स तब यश को पावै ।। दो० श्राना को बीघा जुतत माफी सबैहबूब । फिर यह भुइँ कह पाय है तोसों राजाखूब ।। नहीं मैडमैढ़ी कहूं गिरिपयोध सरहद्द । जमीन जाके राज में लखी कि सौभर रह ।। श्रामल को अरु मुल्क को खर्चबाहिरोछोड़। जमारुपय्या कोशमें सुन छियानवे करोड़। चौ० तुमउजैन्पतिहौनरनायक । तेरोयशगावैसोलायक ॥ अवध नाथ गावै सुख पावै । अपनी मतितो सरिस दृढ़ावै ।। गावै शेशसहस फण ताके । दोसहस्र रसना जाके ।। यों सुनवचन कंदला केरे । हंसिनर नाथ कपाकरि हेरे ।। अहोकंदला कहां तू आई । भईकहा तुमकहँ दुचिताई दो० जो पुहुपावति में भयो माधो द्विज को हाल । सो विक्रम नरनाथ पै कह्यो कंदला बाल ॥ चौ जिहिलीगमाधोबीणबजायो।जिहिलगिसिरीरागपुनिगायो। जिहिलगि पुरनारी अकुलानी। जिहि लखि प्रजाफिरादेठानी।