पृष्ठ:बिरहवारीश माधवानलकामकंदला.djvu/१७६

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१४८ विरहवारीशमाधवानलकामकंदलाचरित्रभाषा। जिहिलगि मंत्रिनमंत्र विचास्यो। माधो नल को दयोनिकायो॥ लीलावति की प्रीति सुहाई । नृप पै काम कंदला गाई ।। दो० लीलावति दिनकी सुता माधव ताकोयार। प्रेमनमेंसमता सुभग राजा करतविचार॥ चौ० माधो नलको पासबुलायो। कामसैन को कहिपठवायो॥ बर्जेनगारे सबदल माहीं। कूच कीन्ह पुहुपावति काहीं॥ काम सैन विक्रम बजरंगी। माधवनल बैताल प्रसंगी। गजरथ ऊपरसबै सम्हारे । भूमिपंथ जनु भानुपधारे ॥ दलअपार बरणे कविकोई । भरत खंड चलदलर होई ॥ कछुदिन मारग माहिं बिताये । पुहुपावती पुरी नृप आये ॥ इतिश्रीमाधवानलकामकंदलाचरित्रभाषाविरहीसुभानसम्बादे श्रृंगारखंडेअट्ठाईसवांतरंगः २८ ॥ उन्तीसवातरंगप्रारम्भः॥ चौ० योजन एक नगर लखिनेरा। कस्यो उज्जैन पती ने डेरा ।। मालासमपुहुपावति घेरी। घर २ खबरभई तिहि बेरी ॥ जिहिमाधवकहँनृपतनिकारा । सोदिजदेश उज्जैन पधारा ॥ लै उज्जैन पती कहं आवा। कसन करी अपने मनभावा ।। सुमुखी खबर कहूं यह पाई । त्वरितहिं लीलावति ढिगाई ।। सुखअथाह गदगदहिय फूला । मनसनेह केझूलन झूला ॥ चाहे कहो किसा तिहि पाहीं । भरैगरोकहि आवत नाहीं॥ साहस कर यह बचन उचारा । यह दल बीच मीतसखितिहारा ।। यह कहि के लपटानी दोई । अधिककथा कहि जात न कोई ॥ हियहिलके सुख के सुखध्याई । सत्यअसत्य खवरातिहि पाई। पुनिधरिवार सखीगहि बाहीं । यों बोली लीलावति पाहीं । सुनसखि चाहसत्य मैं पाई। नगर उज्जैन केर नृप आई। दूसर नृप कामावति केरा । तिनके साथ मीत पनि तेरा।। तीसलाख असवार गनायो। एकलाख लै पैदल आयो ।