पृष्ठ:बिरहवारीश माधवानलकामकंदला.djvu/१८२

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१५४ विरहबारीशमाधवानलकामकंदलाचरित्रभाषा। मणि गण मालाबहुतकदीन्हीं। विनती बहुप्रकारसों कीन्हीं॥ मंडफ मार फिरो दुल्हराई । सबवरात डेरन को आई। चढ़यो चढ़ायो बहु विधि काई । नगअमोल कछु बराणिनजाई। बहुरिबराती डेरन आये। बीती निशि रबि उये सुहाये । फिरी राछ लीलावति की जबहीं। भाँवर सुघरी आई तबहीं । दो गजमोतिन के चौकजब पुरवाये सुखपाय । कनक पटा कंचनकलश तहां धराये आय ॥ एक ठौर लीलावती सहित बैठि रतिनाथ । मणि गण खचित जो मौर शिर विप्रचारहिंगाथ। गणपति पावक पूजि के समिधसुपारी आन। परि भाँवररति नाथ की बहु बिधि बजे निशान ॥ चौ. डेरन गये सवै सुखपाई । रहस बधाये दुलहिन आई ॥ कियेनिछावर मणिरुहीरा । गजअरु बाजि बहुत विधिचीरा॥ मंगल गावहिं हिलि मिलि नारी। गईभवनको दुलहिनप्यारी॥ मड़वाघर सब वरात काई । भोजन हितमंडफाहि बुलाई ।। दो० सववरात कामावति नृपति माधो विक्रमराय । चलिपहूंचे रघुदत्त के तिन बैठारेसुखपाय || पद्धरी । बहुविविध भाति के अन्नपान । परसे सबको आनन्द- मान॥ जेवहिं सबमिलकरके जो प्रीति । गावहिं जो सु. न्दरी बहुत गीत ॥ दो० भोजन कर भूपन सहित हर्षि चले रति नाथ । सबहिन को बीड़ा दियो बड़ीप्रीति के साथ ॥ मोतीदाम । विद्या पति आनन्द बढ़ाय ॥ डेरनगये बहुतसु. खपाय ॥ निशिभई हानि जबउयेभान । गजहिं निशान घनके समान॥ दो० सववरात रघुदत्त ने बुलवाई तिहिबार । सजिर के मंडफगये करिखे पलकाचार॥