पृष्ठ:बिरहवारीश माधवानलकामकंदला.djvu/१८१

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विरहबारीशमाधवानलकामकंदलाचरित्रभाषा। १५३ फेर प्रभात नगर सब माही। कुदुवनके घरचढ़ी कराही। तुलहि मिठाई गजलें गावें । छकरा भर जनवासे आवै ।। पुरी कचौरी बहु तरकारी । ढेरीसब जनवासे डारी ।। चारो पानी लकड़ी सोई । कनिक दार घृत शक्कर सोई ॥ जनवासो इहि भांति सम्हारी। मंडफ माहिं रची जेवनारी ॥ टीका लाख दशक कर साजा । अपर अभूषण हय गय राजा॥ दो. आवनहार बरात की तय्यारी सुनिकान । पुरबासी नर नारि सब देखन चढ़ी अटान॥ इतिश्रीमाधवानलकामकंदलाचरित्रभाषाविरहीसुभानसम्बा देशृंगारखंडतीसवांतरङ्गः ३०॥ इक्कीसवांतरंगप्रारम्भः॥ दो. कामसैन विक्रम नृपति द्विज माधव के साथ । सहसतुरीगज तीनतहँ साजी सुभग बरात । चौ० नौबत बजै सुभगसहनाई। नगरी सब बरणन धुनिछाई ।। सिगरे नगर खोर सबमाहीं। प्रातस बाजी पूरण आहीं। कलश दीप महताब अलेखी। जानत वह जिन खूबी देखी ।। प्रथमभूप जनवासे आये । उचित २ डेरा लगवाये। मिजयानी सबहीने पाई । तौ तक निवतहरी तहँ पाई ॥ उमह्यो नगर नारि नर सोई । कुचमर्दन ठौरन में होई ।। नौबत बजी भई असवारी । आतसबाजी त्योंउजियारी॥ द्वारचार कहँ दूलह प्रायो। मनहुं भानु भूलोक में आयो ।। उमह्योनगर नृपति यह देखी। जिहिकरअपयश सुनतबिशेखी। महाराज विक्रम तिहिबारी । कलश कंठ माला मणिडारी॥ दूलह उतर द्वार जबआवा । नेगन को तब योगलगावा॥ टीका किये बहुत रथवाजा। शिविका कनकथार गजराजा॥ २०