पृष्ठ:बिरहवारीश माधवानलकामकंदला.djvu/३०

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तिहि चरणन पर शीश धरि बरणत कथारसाल ॥ छप्पय । प्रथमशाप कनवाल वितिय भारुण्ड खंडगन । पु- नि कामावत देश बेस उज्जैन गवनमन ॥ युद्धखंड पुनिगाह रुचिर शृंगार बखानो। पुनिबहुधा बनदेश नउम बरज्ञान बखा- नो॥ कही प्रीतिरीरीति गुनकी सिपत नृप बिक्रमको सरसयश। नौवंड माधवा कथामें नौरस विद्या चतुर्दश॥ चौ० । सोसुनसुखवनदोषन कोई । यहगुणकथनकवित्तनहोई॥ मतवारो बिरही नर जैसो । उनमादी बालक पुनि तैसो ॥ शिथिल शब्द ये सबही भाषत । अर्थ अनर्थ अर्थ नहिंराखत॥ सुनिसज्जन निश्चय सुखपावै । मूरख हँसि मूर्खता जनावै ॥ दो। जिनचोखो चाखो नहीं तेकिनपावै चोज । बोधाचाहै सो बकै मतवारे की मौज ॥ चौ०। पूरीलगी डगी फिरनाहीं। सुरतलेश महबूबामाहीं। विछुरनपरी महाजनकावा । तब बिरही यहग्रन्थ बनावा ॥ दो। पत्रीछत्रबुंदेलको छत्रसिंह भुवमान । दिलमाहिरजाहिर जगत दानयुद्ध सनमान ॥ सिंह अमान समर्थ के भैयालहुरे अाहिं । बुद्धिसैन चितचैनयुत सेवों तिन्हें सदाहि ॥ कछुमोते खोटीभई छोटी यही विचार । डरमान्यो मान्यो मने तजो देश निरधार ।। इतराजी नरनाहकी बिछुरिंगयो महबूब । बिरह सिंह बिरही सुकवि गोताखायोखूब ।। वर्षएक परखत फिरो हर्षवंत महराज । लह्यो दानसनमानगै चितनचह्यो सुखसाज। यह चिन्ता चितमेंबढ़ी चित मोहित घटकीन । भौनरोन मृगछौनसो तौनकहा परवीन । बहिदाता बड़कुलसबै देखेनृपतिअनेक त्याग पाय त्यागे तिन्हें चितमें चुभेनएक ।।