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पृष्ठ:बिरहवारीश माधवानलकामकंदला.djvu/३१

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बिरहबारीशमाधवानलकामकदलाचारत्रभाषा । कवित्त । देवगढ़चांदागढ़ामंडला उज्जैनरीवाँ साम्हर सिरोज अजमेरलौं निहारोजाई । पटना कुभाउ पैधि कुर्रा औ जहाना- बाद सांकरी गलीलौं वारेभूप देखआया सोई ।। बोधाकवि प्राग श्री बनारस सुहागपुर खुरदा निहार फिर मुरक्यो उदासहोई । बड़े बड़े दाता तेअड़ेन चित्तमें कहूं ठाकुर प्रवीन खेतसिंह सो लखोनकोई॥ दो । जिकिरलगी महबूबसों फिर गुस्सामहराज । बिनप्यारी होवे सोक्यों मोमनको सुखसाज ॥ यो सुनि गुनि निजचित्तमें लिखिदियबालाएक । रहिये खेत नोश के चरण शरण तजटेक ॥ तबहों अपने चित्तमें सकुचौं सोच बनाय । मेरे ऐसी बस्तु कह काहि मिलों लैजाय ।। बनतयहै बनिता कही वे राजा तुमदीन । भाषाकर माधोकथा सोलै मिलौ प्रवीन॥ यो सुन थिरहोहो कथी बिरहीकथा रसाल । सुनरीझे खीजें तजे खतसिंह क्षितिपाल | छप्पय । बुन्देला बुन्देल खंड काशी कुल मंडन । गहिरवार पंचम नरेश भरि दल खंडन ॥ तासु बंश छत्ता समर्थ परनापत बुझिये । तासु सुवनहिरदेश कुल्लआलम जस सुजिये । पुनि सभासिंह नरनाथ लखि बीर धीर हिरदेश सुव । तिहिपुत्र प्रबल कवि कल्पतरु खेतसिंह चिरंजीव हुव ।। दो। नवयौवन बनिता निपुण शुभगुण सदन सुभान । बूझत रसचस के बहुत प्रियपै प्रीति विधान ॥ अतन कथन के कथन यो केलिकथन परवीन । बिरहगिरह प्रेरित तहां विरही पति रस लीन ॥ बाला बूझत बाल में सुन बालम सज्ञान । कहा प्रीति की रीति है कीजै कत उनमान ।। (विहीबचन) अरे यारयारी कठिन करत कठिन नकोय।