विरहवारीशमाधवानलकामकंदलाचरित्रभाषा । नी। जनु पावस घन श्याम मध्य यह बिज्जुघटा घहरानी । फूलन हार फूलके तोरा अरुबहार सरसावै । छापें अंगअंगचं- दन की लखि त्रैताप बुझाव।कछनी कछे सुरङ्ग किंकिणी कर में झुन झुन बाजै । जनु बसंत किंशुक फूलनपर भ्रमरसमूहन राजै ।। गुरुनितंब उंगरी गतकारी पिंडुरीगुलक सुढारू । सोहतहै युगल साँवल में जलज साँकरे सारू॥ चरण राजके शरण सहा- यक तारन तरन बखाने । उपमा कौन कीजिये तिनकी तीनि लोक यश जाने॥ पावन लसत पांवड़ी प्रभुके करमें लकुटरंगी- नी। लटकत चलत त्रिभंगी मूरति करीमैन छबिछीनी॥ आक- पण कर मुरली बनितन की जबजेहि कुंज बजावें । ब्याही अन व्याही निशंक निकरिगेह तजिधावें॥तजैलाजगृहकाजराज को फिर रूप अनुरागी। यहै खीज गुरजन वा पुरजन आकर ने सब त्यागी ॥ ग्यारह वर्ष अधिकदिन बावन प्रकट खेल प्रभु कीनौ । फिर अखंड बूंदाबन अजहूं रहतराज रस भीनो। भजना नन्द द्वारका छाये गोपिन बिरह बढ़ायो । गुप्तखेल में खेल और यो ललिता प्रकट दिखायो॥ चौ० । द्वादशवर्षहरियुतबजनारी। हरिगिरिधरकेसंगबिहारी॥ रहसि दिखाय नहसि पुनिसोई । गयो त्यागि द्वारावतिकोई ॥ छंदपद्धरी। निज प्रेम पंथ बनितनि बढ़ाय । ब्रजराज गयो विरहा बढ़ाय ॥ तिन एक एक कारण अनेक । तिनकरें धरै सुर श्यामटेक ॥ निशियाम काम दूजोनकोय । लखि गेह गेह अति रुदित जोय॥ कोसकै काहि समुझाय बाल । बजबाल परी सब प्रेम जाल॥ त्रोटकछंद । ब्रजगावन दीन समाजजहां । बनिता लखि मीन समूह महां ॥ तहँधीवरहो बजराजगयो । मुरलीस्वर पूजन जारिछयो॥चलिकै छलिकै सबब चलई। मकरध्वज गाहक हाथ दई ॥ अँसुवन प्रवाह पखारधरी । विरहागिनि सों परिपक्वकरी॥ गृह भाजन में सबशोरकरें । सुख ईंधन लावत जोरकरें ॥
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