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पृष्ठ:बिरहवारीश माधवानलकामकंदला.djvu/३९

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। विरहवारीशमाधवानलकामकंदलाचरित्रभाषा। वंतलस्यो॥नवपल्लवपातनयेहुलहैं । मदनदुलबीचधजासुलहैं।। बनफूलतपुंजपलाशनके ।नितसीजतवेसउतासनके ॥ नवकज कली जलमेंलसिहैं। विरहीजनकेमनकोकसिहैं।।पिकचातकशो- रखरेकरिहें। विरहीजनप्राणनते हरिहें। कुसमासरफूल निषंगभरे। अमलानसुधीरनमौरधरे ।। छन्दपद्धरिका । जगमाहिं प्रायसाज्योबसन्त । जवप्रलयका- लसंसारअन्त ॥ जिनधामनहींभानुनहिलाज।तिनकोबिशेषदुख भवसमाज ॥ सुनिकठिनकोकिलाकूकबीर। असकौनप्रबलजोधरै धीसालखिरसालको मारुवाल । असकौन भयोविरही बिहाल । सबैया। मुखचारभुजापुनिचारसुनें हदबांधतवेदपुराननकी। तिनकीकछुरीझकहीन परै इहिरूपयाकोकिलाताननकी ॥ कवि बोधासुजान वियोगीकिये छबिखोई कलानिधिआननकी। हम तौतबहीपहिचानीहती चतुराईसबैचतुराननकी ॥ दो। यहवसंतऋतु चारिनिधि बिरह बढ़त लखिबीर । वजनायक खोहित बिना किमि करलागहितीर । चौ । प्रफुलितकजफुले जल माहीमन हुंपुत्रबाड़वकेआहीं। देखत दहत वियोगीलोचन । बिनसहाय ब्रजपति दुरखमोचन ॥ दशहूं दिशिपलाश छबि छाई । मनहुंसकलवन लाइलगाई ॥ यह निरधूम दवागिनि सोई । पान कीन्ह गिरिधारी सोई ॥ दहत कूक कोकिलकी गाढ़ी। जनु रनुमारू गावत ढाढ़ी ।। नउतम पात अरुण लखै कैसे । ललित पताकर रणमें जैसे ॥ उनत भंग झोरत बन माहीं । बरषत मनहुं पंचशर अाहीं ।। पवन चक्र चहुंदिशिते धावत । मनहुं मतंग गजकई आवत पवन बबूरा बजत कठोरा । क्षितिपै नृप बसंत को तोरा ।। जब अवश्य बीतत है जैसी । तबसहाय साजत विधितैसी ।। हरिक्षिति सुखद चंद्रिका जोई । ज्वालहाल यहि अवसरसोई॥ शीतल मंद सुगंध बयारी । त्रिविध तीन तापशम नारी ॥ दो | विरह गिरह चौकित चकित चली बियोगिन बाम ।