पृष्ठ:बिरहवारीश माधवानलकामकंदला.djvu/३८

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बिरहबारीशमाधवानलकामकंदलाचरित्रभाषा। चित्तचहा ॥ इतने पैतजो तो तिहारो बने कवियोधाहमें कहनेको रहा। जिनप्रेम मुकाबिले पीउदई नरते जगबीचजियेतोकहा ॥ (सामान्यतासखिनके वचन चौपाई में) श्रीवजराज रासरच भामिनि । अमितविलास दिखायेकामिनि॥ के वह शरद निशासुख कीन्हों।कै अवनाथ अमित दुखदीन्हों। सोहियते विछरे नाह हिमऋतु इमिागम जगत । उलटी एकपनाह शीतदिवस दाह करत ॥ चौ० । अवयो विरह न बूड़त कोई । कैपषान यहतनु नहिहोई॥ गये न निकसि प्राण दुखदायक । जबदेखे बिछुरत ब्रजनायक ।। गये न नैन फूटमतवारे । इन बिछुरत ब्रजराज निहारे ॥ भस्म न भई देहयह तवहीं । चल्यो त्यागि बजनायकजबहीं॥ भुजन चापिहरिहियसोलायो। कठिनजात विधिकुलिशवनायो। अबयोचंदउगतकेहिकारन । निशिऔ दिवसनये जिमिभारंन ।। वृन्दाबन के द्रुमलहि चारे । हरिबिछुरत विधिक्यों न सिधारे ॥ गयो न सूखिकालिन्दी बारी । जिहिजलकेलि कीन्हगिरिधारी॥ के वह सुखकै यह दुख भारी। कस्यो कहा हमको गिरिधारी॥ निलज प्राणप्रबनिकसत नाहीं मिलहिंजायहरिगिरिधरकाहीं॥ (अथवचन चौपाई) लिखिकर ऐसो प्रेम नवीनो । कौन विचार बिरहलिखि दीनो ।। याते विधिकी भूल अनैसी । जोपै करत निहायत ऐसी॥ (अथसखी बचन दोहा) ये स्वामी मनशोच यह आवत अग्र बसंत । पियविदेश हिय विरहयुत किहिजीवै कोतंत ।। सवैया। बटपारन वैठिरसालनपै कोयलीदुखदायकरेररिहै। वन फूलेहँफूलपलाशन के तिनकोलखि धीरजकोधरिहै ॥ कविबो- धामनोजके पोजनसों विरहीतनतूलभयोजरिहै । कछु तंतनहीं बिनुकंतभटू अबकीपौवसंतकहाकरिहै । नोटकछन्द । जगमें जवआयवसन्त बस्यो। तक्कन्द्रप मूरति-