पृष्ठ:बिरहवारीश माधवानलकामकंदला.djvu/४९

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

विरहवारीशमाधवानलकामकंदलाचरित्रभाषा । दयो माधवा हाथ दोहा लिख लीलावती। बरौं चिताके साथ कै माधो द्विजकोबरौं । माधव विषय सनेह निबहैतो निवहै सही। धरै रहैनर देह नातो कासंसारमें ॥ २ ॥ येही बोल करार करराखे दोउ ओरते। बहुबालक चटसार जाहिर और न काहुभव ॥ छंदपैगाम । चित चाहदयो प्रिय प्रानते । के लिखलबतरा- तनजाहि बखानते ॥ आशिक श्री महबूबदुओ दोनों ओर ते। प्रेम कथा कहदिवसबितावत भोरते ॥ योंद्विज माधव चित्त बसोहित मित्रको। चित्त न पावत एक सिखावत कित्तको ॥ त्योंहिय बालप्रवीन हितूकह चाहती। त्याग कियो गृह काज सनेह निबाहती॥बाग तड़ा ग इकंत सुमंत्र बनावहीं । सजि बीण सितार झलेलगुगावहीं ॥ काममई सब बाम ब्राह्मने काम सों। माधव नल तज धाम रह्यो लगबामसों। (अथलीलावती स्वरूप कथन) दो० अंकुरयोबन बालसो सती रूपके गेह । है माधो दिजसों लगो जाको प्रेम सनेह ॥ छंद दोधक । है द्विजराज मुखी सुमुखी अति । पीनकुचाह गरुरी गरी गति ॥ है हिरनाक्षय बाल प्रबीनिय । त्योंद्युतिदा मिनि की करिछीनिय॥ पन्नगमैचकसी बरवैनिय । कुंदनलाभ- लकै सुखदैनिय ।। है न बड़ी अति प्रीति भरीत्रिय । ती क्षणभों हकटाक्षकरयोविय ॥ खेलतसी उलती मगडोलहि । कंचकी आपकसै अरुखोलहि ॥ हारउतारिहिये पहिरै पुन । पाँवधरै लहित्यों न उराधन ॥ हारशिंगारशिंगारहि सुन्दर । क्योंन बसै तियछैल दिलंदर ॥ यों कटि मोरत छांहनिहारत । ओढ़नी बाराहिबारसम्हारत॥केशर आर दियेसुकमारिय। मैन मई झलकै नवनारिय ॥ नेवर योंझलकाय चलैजब । छैलहियो करबै निरखै तव ॥ घूम घुमारिय घाँघरिया सजि। बाइकओढ़नी ओढचलै