पृष्ठ:बिरहवारीश माधवानलकामकंदला.djvu/४८

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२० विरहवारीशमाधवानलकामकंदलाचरित्रभाषा । नैन ॥ पुनिकह्यो विप्रसहजोर पानि। नितदेवदर्शयह ठौरआनि॥ पुनिपरी शंभुचरणन अधीन । घरदेहु येहमोहिं जानदीन॥गौ- रीसमस्त बोली सुवानि । तियगमन कीन्ह यहसत्य मानि ॥ति- हि दृगन अग्रतेओट होत । बिज बिरहसिंधु में लयोगोत ॥ भुइँ पस्यो पटकि बीणा सुपागि । दृगलगालगै शरबिरहलाग ॥रध- रहतसाँस हियफटत जोर । दृगचलेवार शिवचरण तोर ॥ पुनि पॉछि आँशुडगखो प्रवीन । शिरपागधार करवीण लीन नि हचलसुनैन बिरहीसुरंग। लटपटी पागग्रीवाउतंग ।। मनमलिन चकित आयो निकेत । लखिपरन लह्योसवहीन हेत ॥ विगरयो विशेष सुतको सुभाय । विद्याप्रकाश यह हेतपाय ॥ इकविष्णु दास पण्डित प्रवीन । तिहिहाथ माधवा माँपिदीन॥ यहपढ़ेगुनै परवीन होय । सुन विष्णुदास दिजकरहु सोय ।। शिशु पढ़हि और तिनके अवास । तिहिपुत्र दीनविद्याप्रकास ॥ दो। विधिहि भाव लीला वती माधव एकहि साथ । विष्णु दास घरवर्ष दिन संथालीन्हों साथ ।। सो पंडित मंडित पढे विद्या दशौचार पुराचीन मतिग्रंथलखि बिधिवतकहि निरधार । छंदछप्पय । ब्रह्म ज्ञान रसादि नाद पुनि बेद बखानत । बै- द्यक गणित विशेष ब्याकरण जलतर जानत ॥ धनुष धरनपु- नि कहत नित्य सांगीत नचावत । कृषी निपुणता बाणिज्य अश्वधावत. चढ़िधावत ॥ रतिकेलि आदि बांधा सुकविसभा चातुरी इल्मलहिाइमपुराचीनमतग्रंथलखियेविद्यादशचारकहि ॥ दो. ० इन मध्ये चौंसठि कला बरणत कविजन और । ते माधव लीलावती नजर करी तिहि ठौर ॥ सोरठा । सुन सुभान यहरीति दिलभर दिल महरम कहत। दीद २ परप्रीति माधव लीला वति यथा ॥ बढ़त एकही साथ दिन पर दिन अधिकात हित । लीलावति रति नाथ दैतन मन एक इभये ॥