पृष्ठ:बिरहवारीश माधवानलकामकंदला.djvu/५३

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पिरहवारीशमाधवानलकामकंदलाचरित्रभाषा । चौ. वीणलियेगावतजोबजावत । माधवनलसो विप्रकहावत ।। आयचीर चितचोर न बारो । लगै मोहिं प्राणनतें प्यारो ॥ जो ते नाहिं मिलावत प्यारी। तो मैं जियत नहीं इहिबारी॥ सुमुखी कहै सुनौ हो बाला। है तेरो निज तात कराला॥ सुनै कदाचि होय तो कैसी। छिपत नहीं यह बात अनैसी ॥ (लीलावतीवचन) होनहार जो अजहूंहोही । खड्गधार किमि काटहु मोही॥ मर किन जाउँ प्रीति नहिं छोढौं । नेकीबदी शीशपर ओदौं। बरु किमि लिखी भाल को मेटौं । देहु छोड़ माधवनल भेंटों ॥ दो० ज्यों चकोर शशि सों पगो दुख सुख लह्यो दुरैन । दृग फूटे जिह्वा जरी इश्क पंथ छूटैन । छप्प कह चकोर सुखलहत मीतकीन्हा रजनीपति। कहक- मलन कह देत भान सह हेत कीन्ह अति ॥ घुन कहँ कहा मि- ठास लकुट झूरी टकटोरत । दीपक संग पतंग आयनाहक शिर फोरत ॥ नहिं तजत दुसह यद्यपि प्रगट बोधाकबि पूरी पगन। हैलगी जाहि जानत वही अजब एक मनकीलगन । चौ. • अबतो आनिबनी सबयेही।जीव जायकै मिलैसनेही। जौ लौं नहीं माधवा देखौं । तौलौं जग ऊजर कर लेखौं ॥ सो० प्रेमपंथं दृढ़ जानि लीलवति के बचनसुन । ताके हितकी बानि तवयोली सुमुखी सखी ।। अब जनि होहु उदास धीरजधर लीलावती। पूजोंतेरी आस भूलन करहुं प्रकाश जग॥ (अथमाधवबिरहकथन) दो सुनसुभान लीलावती गई आपने गेह । ताबिछुरत उस्माधवा बाढो विरह अछेह ।। छंदछप्पय प्रथमलाख अभिलाख बहुरि गुण कथन गुणन गनि । पुनि सुमिरन उद्देगि प्रगट उनमादि तहांभनि ॥ चिन्ता ब्यापै चित्त ब्याधि पुनि ब्याधि बढ़ावै । जडिजड़िता को अंग