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पृष्ठ:बिरहवारीश माधवानलकामकंदला.djvu/६

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पना बीणाले राजा की सभामें जानेका विचारकियाजब ड्योढ़ी परपहुंचे तबड्योढ़ीदारने जानेसेरोका और कहाकिसभामें किसी कोजाने की आज्ञा नहीं है और सभामें गायन प्रचार हो रहाथा जिसका शब्द सुन कर माधवानल ने कहा कि मृदंगीका जो पूर्वाभि मुखाहै उसका बायें हाथका अंगूठा मोमका है इसकारण से वह बेतालाबजाता है इसबात को सुन ड्योढ़ीदार ने राजा के पासजाय कह सुनाया कि एक ब्राह्मण बीणा लिये पाया है और ऐसी बातें कहताहै यह सुन राजा ने माधवानलको बु. लालाने की आज्ञादी माधवानलने राजा से यथोचित सन्मान पानेपर राजाने अपने गले से गजमुक्ताकी माला उतारमाध- वानलको पहिरादिया और माधवानल राज्य सभा में ऐसा सु. शोभित हुआ जैसे कि बगुलोंमें राजहंस शोभाको प्राप्तहोता है और कामकंदला और माधवानल की जब चार आखेंहुईं तबतो दोनों आपुसमें मोहित होगये तिस पश्चात् गाय न का प्रारम्भ हुआ और कामकंदला अपनी कलायें तथा नृत्य गान आदि ऐसी दिखातीभई कि जिसका वर्णन आप लोगोंको ग्रन्थ देखने से विदित होगा फिर क्या हुआ कि एक ऐसी अद्भुत कला दृष्टि- गोचर हुई कि उस नटीके नाचते नाचते एक भ्रमर उसके कुच पर आबैठा और उस भ्रमर ने उस स्थान पर ऐसा काटाकि वर पीड़ा के क्लेशमें घबरागई परन्तु बेवश उसने यहबिचारा किर्या इसको हाथसे छुटाती हूं तो भाव नष्ट होताहै और जो पांव रों तीहूं तो तालसे बेताल होजाती हूं उसने ऐसी उक्तिकी कि अप ने सर्व अंग की बायु बटोर उसी स्थान द्वारा ऐसी बायुछोंड़ी कि वह भ्रमर उड़गया इसबात को जितने सभासदथे किसी ने- न लखपाया केवल माधवानल ने यह चरित्र देख प्रसन्न हो वह गजमुक्ता का हार अपने गलेसे उतार नटीकेगले(डार)छेड़ बी- णाका तार । करि रागको प्रचार ।। गायोतानकोसम्हार । भ. योचकित दरखार ॥ जाको नाहिं पारा वार । ऐसेगुणके अगार।