पृष्ठ:बिरहवारीश माधवानलकामकंदला.djvu/६३

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विरहवारीशमाधवानलकामकंदलाचरित्रभाषा। चौ० अचरजयहै नगरमेंगुन्यो । जोनहिंकाहू देख्यो सुन्यो। सोवत बाल माधवेटरै । जागे ते सरितातटहरै ॥ वेमजकूर डगर में ठाढ़ी । हँसती कहा कौन सुखबाढ़ी ।। एकहि आपु न सोबतराती। बिरहसुराहनार सबमाती ॥ रोवें हंसें चहूँदिशिधावें । एकैखड़ी गलिनमें गावे ।। एकै बूझैप्सबही येही । तुमक हुंदेखो विप्रसनेही ॥ सो. उनमादी सबबाम लाजतजे ब्याकुल फिरें । भूलो सुत पतिबाम किय माधव जादूगरी ।। झू । हग एक अंजन ऑजिकै एकैचली अकुलांय । एकै महावर देत बिसस्यो दयो एकईपाय ॥ एकै अन्हात उमाह बादी चलींचसन चुचात । एकै लिये करमें विरी तेह बनै नहि खात ॥ एके लिये करमें कसौनीसो कसी नहिं जाय । उनि यालपेटे शीश सों अरुकंचुकी लियराय॥शिशुतो पुकारेदारमें भरतारखोरनमाहि । दिजनंदकीपहिरदगीसरामिंदगीनहिंखाहिं।। चौ• टूरतहार बारनहिं बाँधे । उघरोशीश कंदेला काँधे ।। एकै करमें लिये मथानी । एकन छोड़े माटीसानी॥ एकै लोईकरमें लीने । एकनके करगोवरभीने ॥ एकै नदीतीरजो नारी । बसनत्यागिउठिचलीउघारी। जलशिरधरंगेहकोजाती। जलढरकायचलीउनमाती॥ एकैलडिकैतीर पियावत । चलीं निपटबहरोक्तआवत ॥ दो० तनमन बड़ि बिरहमें मूछित है गिरजाय । सरिताके तटकामिनी बिनजल गोताखाय॥ त्रोटकछन्द । सरिता तटबाल विहाल फिरें। अपने पटसों. दि फैलिगिरें । दुख औसुख जानि कळू न परयो । बनितानि कहा हियहेतुधरयो । जो जहाँसो तहाँ चकचौँधिरह्यो।आश्चर्य कळूनहिं जात कह्यो॥ स को लखती सपमौन गह्यो। यह बेद न भेद कछूनकह्यो। दो करनाटी माधो भयो बीणा के सुरधार ।