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पृष्ठ:बिरहवारीश माधवानलकामकंदला.djvu/६४

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३६ बिरहवारीशमाधवानलकामकंदलाचरित्रभाषा। डोलाकैसी पुतरियाँ नचीनगरकी नारि ॥ सो० माधोनलको चाहि तनछाया बनिताभई । मौनगहै डरपाहि माधो घरको पथलियो। छन्दसुमुखी । जिहि दिश चलै माधो मित्त । तित २ चलें ब्याकुल चित्त ॥ चकचेतन चित्त माहँ । नारी भई दिजकी लाह ॥ जेहि भोरमाधो जाय । तेही अोरबहैवलाय ॥ बाढीचि त में यह शक । अबमोहिं वृथालगत कलंक ॥ कबहूंसुनै ऐसी राय । बिछुरन मित्तसों पड़जाय। माधोचित्त यहभयमान । छूटि गोगृह लख्यो नहिं आन ॥ बनिता लगीं अपने पंथ । चीन्हें पुत्रसोदरकंथ ॥ बाढ़ोशहरमें यहशोर । माधो है सहीचितचोर ।। जादू है कछूयह कीन्ह । बनिता भईसब आधीन । अब हमन- गर छोड़ें क्षिप्र । के कढ़िजायँ माधोविप्र ॥ दो० लखि अद्भुतकृत विप्रको पुरजन रिसउरान । दरवाजे महराज के गये फिरादेठान ।। द्विजकी वहबारीभई पिछलीकथा विचार । पड़वाकी विनतीगये घुड़वाआये हार ॥ इतिश्रीविरहवाशिमाधवानलकामकन्दलाचरित्रभाषा विरहीसुभानसम्बादेवालखण्डेप्रजाफिरादीनाम सप्तमस्तरंगः ॥७॥(इश्ककज्जाल नाम) (अष्टमतरंग प्रारंभः) दो. यह अष्टमेतरंग में सुन सुभानयह स्वाद। माधोनल अरुप्रजासों नृपसों होयविवाद ॥ चौ. शोरसुनत राजा उठिधायो। पुरवासिनसों योंफरमायो।। दिलकी कहोदरद नहिंगोवो। को असिचाहत शहरबिगोवो ॥ झू०। करजोरके बनियाउठे बलराम ताकोनामा तेलीतमोली संगले कीन्हें अनेक प्रणाम ॥ तजिलाज को महराज सों उच्च- रोसब दुखसाज़ । सुननाथ दुखकी गाथ जासोंहोत शहर बिरा- ज॥ पुरवीण २ लिये फिरैद्विज माधवा तिहिनाम । सुनतान