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पृष्ठ:बिरहवारीश माधवानलकामकंदला.djvu/७६

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४८ विरहवारीशमाधवानलकामकंदलाचरित्रभाषा। खड्गपत्र सों सौगुनौ जाहिर यहकलेश ।। बटछाया तटतालको शंकर शुभमठ पाय । माधवबांदोगढ़ रह्यो चारमासको छाय ॥ चौ. रचिकवित्तशिवको गुणगावै । शंकमाननहिंबीणवजावै ।। याबीणा के गुण त्रिपुरारी । छूटोनगरदेश घरनारी ॥ सर्वसत्यागइसीपरकीन्हा । परनातजोजातयहवीणा ।। शंकरसोंविनतीयहकीन्हीं । यहबीणामोहिं आफतदीन्हीं। दो० गुणमय बैस किशोर लखिबिरही रूपानधान । बांदो गढ़ बासिन कियो माधोको सनमान ॥ जिहि गुन भुवोमसानहूं चलत घरापर धाय । तिहि गुण जियत न यंत्रही कीजै कौन उपाय ॥ चौ० सुवाप्रवीनएकगुणमंडित । तिहिसमानजगआननपंडित ॥ अवतारी अनन्यमतजाकी। तिहिगुणमाधो की मतिछाकी। दो• सुवा कही माधवासों पोनाटकाएक । सोकविवरणी जुदी कर जामें यथा अनेक ॥ छंदपद्धटिका । बटछांह विप्र ऊपर प्रवीन । गुन कथत गूढरस नौमलीन ॥ मलक्यो सो आय प्राखंडमेह । थर हन्यो विप्रल खिकानदेह ॥ जीवोन मित्र अस जानजाय । करिये बियोगको का उपाय ॥ दुखकोट कोट तिलकेसमान । बिन मीत चिछोहाव- ज जान ॥ इक श्यामघटा दक्षिण निहार । गिरिगयो विप्रउरशू- लधार ॥ अतिविशद सजल अतिघोरकीन ।प्रति बरहि धरापर बर्जपीन ॥ चौ० भयवश प्रीति माधवामानी। तासों अपनीविथावखानी॥ होपयोषविरहिनि दुखलायक । मेरोदरदसुनोतुम नायक ।। पुहुपावतीपुरी ममप्यारी । नवयौवन बाला सुकुमारी ॥ हिरणाक्षीगजगामिनि गोरी। शशिवदनी सुंदर मतिभोरी॥ नगनजाटितअमरन सबसाजत । दीपमालसीबालविराजत ॥ दरंद भई सबवान बखाने । सो प्रवीन रस के पथ जाने ॥ ।