४६ बिरहवारीशमाधवानलकामकंदलाचरित्रभाषा। तासों कहो सँदेशा मोरा । बांधोगढ़ ऊपर पति तोरा ॥ तन मन क्षेम चिन्त मतमानो।माधा नल समनामबखानो॥ कहियो मेरी वाला सेती । तेरी फिकर माधवा येती॥ निशिदिन तेरेगुण को गावत । दरशपरश हितज्योललचावत ॥ यहसंदेश प्रिय लों पहुंचावो । मेरोदिलका दरदमिटावो ।। जो तुम कहौ दासनहिं तेरे । येही गुण उपकारिन करे। जो तुम कहौ मनुज हमनाहीं। सो प्रभु इच्छारूपी माहीं।। जो तुमकहाँ बचन नहिं मोही। तो गराज यह कैसे होही ।। जोतुम कहो नगर नहिं जानों । सो पुहुपावति नाम बखानों॥ जोतुम कहो पाय क्यों न जैये । सो नृप की भय जान न पैये। जोतुम कहौ गुसा नृप काहीं। सो इकचूक भई मो पाहीं॥ मेरी तान नगर सब मोह्यो। यह अचरज पुरवासिनजोह्यो। बिन विवाह मोहीं प्रिय मोहीं । सत्य कहतनहिं गोवत तोहीं॥ यह कारण नृपमोहिं निकारो। सुन बिरतंत पयोद हमारो॥ दो० इहिप्रकार दिज माधवा कयो मेघसों बाद । पुनिउदास हो बीणगहि गायो सारँगनाद ।। यथा राधिका ध्यानते दुख दारिद परात । त्यों सारंग के सुर सुने घटा न देख्यो जात ॥ छंदमोतीदाम । घनोउरझो दुख माधव केर । कयो परवीन सुवासों टेर ॥ करैवह कोकल मोकल हीन । छटा छहराय लई सबछीन ॥ रखरैवरही करही कलशोर । घरैतहँचातक पंजरतोर॥ इतेदुखपैन तजे तनपान । भयो चिरंजीव रह्यो दिनमान ॥ दंडक । ज्ञानध्यान सुयश सयान थिर नाहीं प्रीति तिथि- रनाहीं कैसे धीर धरियतु हैं। राज थिर नाही लोकलाज थिर नाहीं शोकसाज परियतु हैं ॥बोधाकबि बर्षा प्रकाशी पराधीन परवीती पै विरही की ज्वाल जरियतु हैं । करम गुनाहीकलिका- लमें मनुष्य होके ताहीपजीबेको यतन करियतु हैं । दो० सुनसुभान नर देह धरि कलिमें सुखी न कोय ।
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