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पृष्ठ:बिरहवारीश माधवानलकामकंदला.djvu/८०

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५२ विरहवारीशमाधवानलकामकंदलाचरित्रभाषा। पुनि भादोंकीघटालखि माधो भयो उदास ॥ चौ० मघामेघ मुगदरसमलागति । छरहबर दवागिनरदागति ।। मंत्रिहीन नृपकी रजधानी । त्यों भादों की रात बखानी॥ छंदछप्पद । पंथथकित दिशि विदशि रहत अंधेरोरैन दिन। पाप पंक सब और नहीं शशिसर लखितखिनानिरिया दिनसंयो- ग कोक बूड़त बियोग निधि । जल थल सबै मलीन जातजल- जात गलित सिधि ॥ भयो विशेष लखि राजमें देश तज्यो को कलन तब । रिझवार भूप भादौं भवन सदा दुरावत बात अब ।। चौ० चातकएक अधम अभिमानी। करषतजीवपीवकरवानी ॥ रहत मयूर धरत जक नाहीं । को बरजै वर बैरिन काहीं॥ गरजत सिंह घटा घनघोरत । पवन प्रचंड मूलतरु तोरत ॥ झिल्ली गन झनकार अनैसी। हिय में उठत हूलजन ऐसी॥ कहु प्रवीण विधि पै कहकीजै। पियबिछुरै बरपाजिमिजीजै ॥ बषाकीविधिखबरन कीन्हीं। लगहगनेहविछुरन लिखदीन्हीं। दंडक । भालमें लिखत भुलाने मेरी बेर कहूं माखनकेवीच फटकार चहियतु हैं । सोना चकतेरी बोधा भाव तो मिलोईना फिर बिछुरन जानयाते खुशी रहियतु हैं ॥ जाकें बड़े नयन में समाने मेरेनन तासों बीच पारदीन्हों कैसे धीरगहियत हैं। भ- ईनारंज तोहिं करुणा कसाई तूं तो ऐसेनिरदईसोंदईकहियतु हैं।। सो. भादों की यह रैन होती बड़ीविहार की। दिगहोती मृगनैन बरषाहोती मैनमय ॥ दो तौलौं तो जीवो भलो कहा साझकहभार । जौलौं प्यारी बगल में करमें उरज कठोर ।। सो० बीत्यो भादौमास बरषाऋतु मांदी भई । कीन्हों जगत सुबास सरविवेकी भूप जिमि ।। छप्पय । जल थल अमल अकांश कमल प्रफुलित सुवा- समय । रविप्रकाश तमनाश पंथ पंथनि सुवासमय ॥ प्रथमका जदै बालफेर जलजा छराई । सरसमाज भुवलोग पिंडल-