५४ विरहवारीशमाधवानलकामकंदलाचरित्रभाषा । सो निपटलालचीनैन जबदेखें खूबीकछु । ताविौ चाह न पैनारिनको बसकळू ॥ निमिषसाथ जितहोय पीन कुचाव नितानों। लखठोरयुनिसोय । फरककरेजे में उठे। छंदमोटका । बाँधों तजि मावो विचल्यो।जाकोहियमेन मतंग मल्यो। पायो गत अश्विन मासजहीं। आयोदिजका- मद शैलतहीं॥ चौ. दीपमालिकादर्शनकीन्हा। दीपदानकामद कहँदीन्हा।। पैतानी मज्जनकार माधो । सीता पति दिग भायो साधो ।। कर दंडवत् वीण करलीन्हों। यशवरणन रघुवरको कीन्हों। जस कछु बालमीक मुनि गावा। सोमाधो सब प्रभुइसुनावा ॥ सो० रघुबरको यशगाय फेर विथा अपनी कही। सुनि प्रभुदीन सहाय मोकहें विधिवेदन दई ।। छंदचौपैया । बेदन बड़मोही विधिवर दोही दीन्हीं दया न आनी। सुबरन तनवारी नारिनवारी बिछुरी प्रिया निमानी।। तेरेढिग भायो दरशन पायो दिलको दरदसुनायो। तुमचिरह वियोगी रघुपरयोगी यातेशरण मनायो । दंडक । ब्याउरकी पीरकैसे बाँझपहिचान कैसे ज्ञानिनकी बातकोऊ कामी नरमानिहै। कैसे कोऊ ज्ञानी काम कथन प्रमा- न करे गुरकोसवाद कैसे बाउरो बखानि है ॥ कैसे मृगनयनी भावै पुरुष नपुंसक को कविको कवित्त कैसे शठपहिच नि है । जानेकहा कोऊ जापै बीत्योन बियोगबोधा विरहीकी पीर कोई विरही पहिचानि है॥ दो० जिन्हेंन बिछुरे भाउ तो लगैन मनमथतीर । सोकाजाने वापुरो विरही जनकी पीर ।। सो० प्रभु को है असप्रेम भयो माधवा विप्रको। तोहिंहोइ अबछेम आठसिद्धिनवनिद्धिनित ॥ चौ० परदक्षिणादेशीशनवावापुनिदिजचलिमंदाकिनिआवा।।
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