पृष्ठ:बिरहवारीश माधवानलकामकंदला.djvu/८९

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विरहवारीशमाधवानलकामकंदलाचरित्रभाषा। लोकि के चकोर वत चोंके से चकसे लोग माधवै चितैरहे। दो. क्षिप्रविप्र को देखके सभाउठी महराय । पैर चारि चलिकै मिल्यो कामसेन नृपयाय ॥ करिप्रणाम राजा कह्यो दूरकिये त्रैताप । त्यों अशीश माधो दई तुव अखंडपरताप ॥ विद्यावान सुजान नर रूपवंत जो बाम । जहींजायँपावै तहां बड़ादरइतमाम ॥ नाम बूझ बूझी कुशल कामसेन करि प्रेम । कही विप्र अब तो भई तुव दरशनते क्षेम ॥ सिंहासन आसन दयो मुक्तामाल अनूप । मान सहित कर पान लै उठिकै दीन्हों भूप ॥ माधो के कंदला के झपटगये जुरि नैन । निकसि लड़त जिमि शूरमा खड़ी रहे दोउ सैन ॥ सांगीत नाचत त्रिया गावत गीत रसाल । जाहि चाहि खग माधवा वींध्यो लालचजाल ॥ नख शिख भूषण आभरण कहषोड़श शृंगार। लघुक्रम कछु सुरताल कहि कहिहौं नृत्य उदार ॥ (शिरनखकथन) छंद चौपाई । बड़वारे कारेसटकारे केशन गंदीबेनी। मीतलके हीतल शीतलक्यों व्याल बधूदुख देनी॥ रूपरास बिचकेशपास विचराजत मांगउदारीमनौधसीधनश्याममध्यते सरिस सुरस धारी॥नीकी लसी लसी मुखऊपर बंक अलकालबेली। गई दरारचंदूके आननत्योंमुखचाहनबेली॥ नितंप्रतिनई कलाकोधार शशितरे मुखसोंजोरै । समनहोय पूनौलौंसज फिरकुरूरैनलोफोरे दंडक । मदन सदन प्राण प्यारीको बदनताको चाहि२ सुधाध रिधीरन धरतुहै । रहत निशिबासर समान अकलंक उर शंक सकलङ्क सोई मानिकहरतु है ।। बोधा कवि नित प्रति नौतम- कलाको धार मास २ योही उपहासनुमरतु है । परवाते पूनो लौं