पृष्ठ:बिरहवारीश माधवानलकामकंदला.djvu/९५

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विरहवारीशमाधवानलकामकदलाचरित्रभाषा। गुणमय गुणमाधवा को पुनिबोली नवलाह । विप्रतिहारे गान की मेरेचित्त में चाह ॥ (माधवावचन) छंद पधारिका । यहराज सभामेरो न काज। हो गहों बीनगा वन न राज ॥ यहकाम होय कसबीनकर । तबज्वाब दीन कंद- ला फेर ॥ द्वैठौर होतमुक्ता विशालाइकउदधि एकगजराज भा. ल ॥ ते लसत शोभराजानग्रीव । इमिविप्र विचारौसकल सींव। (माधवावचन) सो०. मेरी तान कुरूप रंग भंग सिगरो करै। उत्तर दीन्हों भूप द्विज मुख प्रेम बखान शुभ ॥ गई माधवै भूल सुधि पुहुपावति नगरकी । पंचम गायो भूल लीन्हीं व्याधि बिसाहि करि ॥ छंद तोमर । तबमाधवा लै बीन । सुरताल संयुतकीन । जि- हिठौर रंचक वान। जिनके परी वह कान । वहचकित भो ति- हि और । पगुतौ धयोनहिं और ॥ सिगरी सभा अरु भूप । खैर हे चित्र सरूपः॥ छंद दोधक । माधवाने करवीन लियो जब। राजसभा यहहाल भयो तब ॥ जो जिहि और रहो तिहि सूरत । सो लखि ये तिहि ठौर बिसूरतः ।। दो० प्रथम तान सुनि तियाकी मोह्यो तनमन विप्र । पनि फिर बिज की तान पेतिया चकित भइ क्षिप्र ।। चौ० यदपि हतौराजा फरमायो । माधोतदपिबाम हितगायो । गुण के बश गुणवंत बिशेखी । सुनुसुभानयह आँखिन देखी ।। दो द्विजके चितवर तीय है यहवरती मो योग। जो कीजै जाते बढ़े याके हिये वियोग ।। छंद चौपइया। जानो नहिं माधो गायो काधो पवन प्रचंड भयोई । देखत ही हालै बुझी मसालै अचरज चाहन बोई ॥ व हवाल सयानी हिय अकुलानीकरवरवीन सुधारो । दीपक त-