पृष्ठ:बिरहवारीश माधवानलकामकंदला.djvu/९९

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09 बिरहवारीशमाधवानलकामकंदलाचरित्रभाषा । माधोवचन दंडक । हिल मिलजाने तासों मिलके जनावे हेतहितको न जाने ऐसो हितू ना विसाहिये। होय मगरूर तासों दूनी मगरूरी कीजै लघुहोयचलै तासों लघुता निवाहिये। बोधा कवि नीति को निबेरो याहीभांति अहै आपको सरा है ताको आपहू सरा- हिये । दाताकहा शूर कहा सुन्दर प्रवीन कहा आपको न चाहै ताको आपहू न चाहिये। दो. अति सरोष रुखराजको लख्यो कंदलाबाल । सीख माधवा को दई नीकी यहततकाल ॥ स० चाहिकै चित्तमरालनकी निजहाथते तू जिनवाजउड़ावै । गंगके नीरकी प्राशाकरै सरिता जल छोड़े कहाबनिआवै ।। जो तजनेहै तो तजोहितकै कवि बोधान बाद बितर्कबढ़ावै । संपतिसों जो प्रवेशनहीं तो वृथाक्यों दरिदसों तोरनशावै ।। दो० तब अशीशनरईशको दई विप्रकरजोर । हाँ भिक्षुक तुमभूप हौ खोटबकससबमोर ।। इतिश्रीमाधवानलकामकंदलाचरित्रभाषाविरहीसुभानस- म्बादेकामावतिखंडेअखाड़ोकथनचतुर्दशस्तरङ्गः॥ इश्कमस्ताननाम॥ पन्द्रहवां तरंग प्रारंभः॥ सो. भागवदो फलदेखि बड़े ठौर पहुंचेकहां । व्याल शंभुगलपेखि तेसमीरभखिकै जियत ॥ बूड़े बूड़ा सहजबै लीन्हों एकै गोत । कहादोपदरियावको भागआपने होत ॥ छपदा । वृथा सृमृसृष्टाअनितलखिलोकर पति। रविशशिशे पसुरे शशंभुजल जालजारति ॥ क्षर अक्षर अक्षरा अतीतजौ तियसरूपगनि । पल २ प्रेरतकाल जहां लग पंचतत्वभनि ।