हैं, पानी तो उन्हें मिल जाता है, पर माता जी को बड़ियाँ नहीं मिलतीं। बिना गृहिणी के घर में भूत डेरा डालते हैं। विचार के अनुसार मन्नी बातचीत करते और जहाँ कहीं अनाथ की लड़की देखते थे, डोरे डालते थे। एक जगह लासा लग गया। कहना न होगा, ऐसे विवाह की बातचीत में अत्युक्ति ही प्रधान होता है, अर्थात् झूठ ही अधिक यानी एक पैसे की हैसियत एक लाख की बताई जाती है। मन्नी के विवाह में ऐसा ही हुआ। लड़की ने माँ का दूध छोड़ा ही था, माँ बेवा थीं, कहा गया, रुपये दो-तीन सौ लेकर क्या करोगी जबकि लड़की को अभी दस साल पालना-पोसना हैं,––वहीं चलकर रहो, घी-दूध खाओ और रानी की तरह रहकर लड़की की परवरिश करो। बात माँ के दिल में बैठ गई। मन्नी तब तीस साल के थे; पर चूँकि नाटे क़द के थे, इसलिए अट्ठारह-उन्नीस की उम्र बतलाई गई। मूछों की वैसी बला न थी। बात खप गई।
मन्नी के खेतों के पास एक झाड़ी है; कहते हैं, वहाँ देवता झाड़खण्डेश्वर रहते हैं। एक दिन शाम को मन्नी धूप-दीप, अक्षत-चन्दन, फूल-फल जल लेकर गये और उकड़ूँ बैठकर उनकी पूजा करते न जाने क्या-क्या कहते रहे। फिर लौटकर प्रसाद पाकर लेटे और पहर रात रहते पुरवा की तरफ़ चल दिये। एक हफ़्ते बाद, बैंगनी साफ़ा बाँधे, एक बेवा और उसकी लड़की को लेकर लौटे। रास्ते में ज़मींदार का खलिहान लगा था, दिखाकर कहा––सब अपनी ही रब्बी है। सासुजी ने मुश्किल से आनन्दातिरेक को रोका। गाँव के बाग़ात देख पड़े। मन्नी ने हाथ उठाकर बताया––वहाँ से वहाँ तक सब अपनी ही बागें हैं। सासुजी को सन्देह न रहा कि मन्नी मालदार आदमी है। घर टूटा था। भाइयों से जुदा होकर एक खंडहर