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पृष्ठ:बिल्लेसुर बकरिहा.djvu/१२

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में रहे थे; लेकिन वाग्देवी प्रचण्ड थीं, खण्डहर को भी खिला दिया। पहुँचने से पहले रास्ते में ज़मीदार की हवेली दिखाकर बोले––हमारा असली मकान यह है, लेकिन यहाँ भाई लोग हैं, आपको एकान्त में ले चलते हैं, वहाँ आराम रहेगा, यहाँ आपकी इज्जत न होगी, फिर उसी को हवेली बना लेंगे। सासु ने श्रद्धापूर्वक कहा––हाँ, भय्या, ठीक है, बाहरी आदमियों में रहना अच्छा नहीं। मन्नी खण्डहर में ले गये। इस दिन पसेरी भर दूध ले आये। सासुजी लज्जित होकर बोलीं––ऐ, इतना दूध कौन पियेगा? मन्नी ने गम्भीरता से उत्तर दिया––औटने पर थोड़ा रह जायगा, तीन आदमी हैं, ज़्यादा नहीं; फिर अभी कुछ दूध-चीनी शरबत के तौर पर पियेंगे। सासु ने आराम की साँस ली। मन्नी भङ्ग छानते थे। ठाकुरद्वारे में एक गोला पीसकर तैयार किया और चुपचाप ले आये। दूध में शकर मिलाकर गोला घोल दिया। भङ्ग में बादाम की मात्रा काफ़ी थी, सासुजी को अमृत का स्वाद आया, एक साँस में पी गईं। मन्नी ने थोड़ी सी अपनी भावी पत्नी को पिलाई, फिर खुद पी। सासुजी हाथ-पैर धोकर बैठीं, मन्नी पूड़ी निकालने लगे। जब तक नशा चढ़े-चढ़े तब तक काम कर लिया। पूड़ी-तरकारी दूध-शकर मिठाई-खटाई बड़ी तत्परता से सासुजी को परोसा। सासुजी को मालूम दिया, मन्नी बड़ी तपस्या के फल मिले। खूब खाया। मन्नी ने पलंग बिछा दिया था, माँ-बेटी लेटीं। मन्नी भोजन करके ईश्वर-स्मरण करने लगे। आधी रात को ज़ोर से गला झाड़ा, पर सासुजी बेख़बर रहीं। फिर दरवाज़े पर हाथ दे-दे मारा, पर उन्होंने करवट भी न ली। मन्नी समझ गये कि सुबह से पहले आंखें न खोलेंगी। बस, अपनी भावी पत्नी को गले लगाया और भगवान बुद्ध की तरह घर त्यागकर चल