कि अपना क्या बिगड़ता है,––इसका मतलब मालूम कर लेना चाहिये, करुण स्वर से बोले, "हाँ भय्या, समझदार तुमको गाँव के सभी मानते हैं।"
खुश होकर त्रिलोचन ने कहा, "ऐसी औरत गाँव में आई नहीं–– सोलह साल की, आगभभूका।"
बिल्लेसुर को देवियों की याद आ गई थी, इसलिये बिचलित होकर सँभल गये। कहा, "तुम्हारी आँख कभी धोखा खा सकती है? कहाँ की है?"
"यह तो न बतायेंगे, जब ब्याहने चलोगे, तभी मालूम करोगे।"
"पहले तो फलदान चढ़ेंगे, या इसकी भी ज़रूरत नहीं?"
"फलदान चढ़ेंगे, लेकिन कोई पूछताछ न होगी, तिवारियों के यहाँ की लड़की है। सब काम हमारी मारफ़त होगा।"
"किस गाँव की है?"
"इतना बता दिया तो क्या रह जायगा? यह ब्याह से पहले मालूम हो ही जायगा। मगर एक बात है। उनके यहाँ ब्याह का ख़र्च नहीं। भलेमानस हैं। लड़की नहीं बेचेंगे, पर ख़र्च तुम्हें देना होगा।"
"कितना?"
त्रिलोचन हिसाब लगाने लगे, खुलकर कहते हुए, "तुम्हारे यहाँ फलदान चढ़ाने आयेंगे तो ठहरेंगे हमारे यहाँ। थाल में सात रुपये रक्खेंगे और नारियल के साथ एक थान। इसमें बीस रुपये का ख़र्च है। यह तुम्हें फलदान के दिन से सात रोज़ पहले दे देना होगा। फिर फलदान चढ़ जाने पर डेढ़-सौ रुपए विवाह के ख़र्च के लिए उसी दिन देना पड़ेगा, सब हमारी मारफ़त। भले आदमी