को मिला। तीन-चार दिन में रंग बदल गया। उन्होंने आग्रह किया कि ब्याह तक वे वहीं रहें। मन्नी की सास ने भी स्वीकार कर लिया।
गाँव में बिल्लेसुर की चर्चा ने ज़ोर मारा। एक दिन त्रिलोचन ने मन्नी की सास को घेरा और पूछा, 'बताओ, ब्याह कहाँ रचा रही हो?"
"अपनी नातेदारी में" मन्नी की सास ने कहा।
"वह कहाँ है?" त्रिलोचन ने पूछा।
"क्यों, क्या बिल्लेसुर तुम्हीं हो?" मन्नी की सास ने आँखें नचाकर पूछाः फिर कहा, "बच्चे, मेरी निगाह साफ़ है, मुझे तींगुर नहीं लगता। अब तुम बताओ कि तुम बिल्लेसुर के कौन हो?"
बल्ली नहीं लगी। त्रिलोचन बहुत कटे। कहा, "अच्छी बात है, कौन हैं, यह होने पर बतायेंगे जब उनका पानी बन्द होगा।"
"नातेदार रिश्तेदार जिसके साथ हैं, उसका पानी परमात्मा नहीं बन्द कर सकते। अच्छा, हमारे घर से बाहर निकलो और गाँव में पानी बन्द करो चलकर।" त्रिलोचन खिसियाये हुए घर से बाहर निकल गये।
बड़े आनन्द से दिन कट रहे थे। बिल्लेसुर की शकरकन्द खूब बैठी थी। कई रोज़ उन्होंने मन्नी की सास को शकरकन्द भूनकर बकरी के दूध में खिलाया। मन्नी की सास मन्नी से जितना अप्रसन्न थीं, बिल्लेलुर से उतना ही प्रसन्न हुईं। उन्होंने बिल्लेसुर के उजड़े बाग़ का एक-एक पेड़, शकरकन्द के खेत की एक-एक लता देखी। उनके आ जाने से ताकने के लिये बिल्लेसुर रात को शकरकन्द के खेत में रहने लगे। दो-एक दिन जंगली सुअर लगे; दो-तीन दिन कुछ-