- बिहारी-रत्नाकर तजि तीरथ, हरि-राधिका-तन-दुति करि अनुरागु ।। जिहिँ ब्रज-केलि-निकुंज-मग पग पग होतु प्रयागु ॥ २०१॥ ( अवतरण )-कवि की उक्ति अपने मन से, अथवा किसी व्रजवासी भक्त की उक्ति शिष्य से ( अर्थ )-[ तु] तीथो को छोड़ [ और ] श्रीकृष्णचंद्र [ तथा ] श्रीराधिकाजी की तन-द्यति ( शरीर की कांति ) मैं [ अपन] अनुराग कर ( लगा ), जिससे ( जिस अनुराग के लगाने से ) व्रज के विहार-निकुंजों के मार्ग में पग पग पर प्रयाग ( तीर्थराज ) हो जाता है ( प्रकट हो जाता है ) ॥ | भाव यह है कि श्रीकृष्णचंद्र तथा श्रीराधिका जी की श्याम तथा गौर छविय से यमुना तथा गंगा तो वहाँ उपस्थित हैं ही, उनमें अनुराग के लगने से सरस्वती भी मिल जाती हैं। अतः वहाँ गंगा, यमुना तथा सरस्वती, तीन का संगम हो जाता है, और फिर इस संगम के कारण कुंज के प्रति पग पर प्रयाग प्रकट होता है । तात्पर्य यह कि श्रीराधा और श्रीकृष्ण के ध्यान में अनुराग करने से व्रज के कंज के प्रति पग पर प्रयागराज का फल प्राप्त होता है, अतः तीर्थाटन का श्रम उठाना व्यर्थ है । इसके अतिरिक्त किसी तीर्थ में जाने से उस एक ही तीर्थ का फल मिल सकता है। पर उक़ विधि से, एक सामान्य तीथै की कौन कहे, अनंत तीर्थराज के फल सुलभ हैं। खिन खिन मैं खटकति सु हिय, खरी भीर मैं जात । कहि जु चली, अनहींचितै, ओठनु ह बिच बात ॥ २०२ ॥ खटकति =कसकती है, पीड़ा देती है ।। अनहॉचितै = विना देखे ही ।। ( अवतरण )-नायिका ने बड़ी भीड़ में जाते हुए, नायक की ओर विना देखे ही, ओठ के बीच ही मैं, कुछ कहा। नायके पर उसका जो प्रभाव पड़ा, उसे वह सखी अथवा दूती से कहता है ( अर्थ )--बड़ी भीड़ में जाते समय [ लोगों द्वारा लक्षित किए जाने के भय से ] विना [ मेरी ओर ] देखे ही [ वह ] ठों के बीच ही में जो बात [ इस विचार से कि उसके ओठों के चलने की विशेषता से उसका अभिप्राय समझ लूगा ] कह कर चली गई, वह क्षण क्षण में [ मेरे ] हृदय में खटक उठती है ॥ | खटकने के दो कारण संभावित हैं । एक तो यह कि नायक उसका अभिप्राय भली भाँति नहीं समझा, अतः उसके हृदय में रह रह कर यह खटक होती है कि उसने क्या कहा, और दूसरे यह कि उसने कदाचित् कोई ऐसी बात कही अर्थात् उराहना इत्यादि दिया, जो रह रह कर उसको दुःख देता है। अज न आए सहज रँग विरह-दूबरें गात । अब हीं कहा चलाइयति, ललन, चलन की बात ॥ २०३ ॥ ( अवतरण )-नायक अभी थोड़े ही दिन हुए विदेश से आया है, और अब फिर जाना चाहता है। सखी उसका चलना रोकने के अभिप्राय से कहती है