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विहारी-रत्नाकर आमिर ( अरबी शब्द ) = हुक्म चलाने वाला, हाकिम ॥ जौर ( फ़ारसी शब्द )=अत्याचार ॥ घटि बाढ़ = घटी बढ़ी, छोटी बड़ी ।। रकम ( अरबी रक़म ) =अंक ।। | ( अवतरण )-नवयौवनाभूषिता नायिका के शरीर में जिन वस्तु अर्थात् उर, नितंब इत्यादि मैं घटी अर्थात् लघुता थी, उनमें यौवनागम के कारण बढी अथात् गुरुता, और जिन वस्तु अर्थात् कटि, चंचलता इत्यादि मैं बड़ी अर्थात् अधिकता थी, उनमें घटी अथात् न्यूनता आ गई है। इसी विषय को सखी नायक से, नायिका के शरीर को देश, यौवन को नया आया हुआ हाकिम, और उक्न परिवर्तन का हाकिम के अत्याचार-द्वारा हाना कह कर, वर्णित करती है. ( अर्थ )-[ उस ] नागरी का तन-रूपी नया मुल्क पा कर यौवन-रूपी हाकिम के अत्याचार ने [ उसमें की ] रक़में छोटी से बड़ी [ और ] बडी से छोटी, [ अर्थात् ] और की और ( अदलबदल ), कर डाली है । जब कोई राजा किसी नए देश पर अधिकार कर लेता है, तो उस देश के पुराने कर्मचारिय से उसकी जमाबंदी ले कर वहाँ किसी अपने हाकिम को बंदोबस्त करने के निमित्त, भेजता है। वह हाकिम बहुधा घूस ले कर यह अत्याचार करता है कि जिनके नाम पर जो कर लिखा रहता है, उसका परिमाण घटा देता है, और जिन लोग से घूस नहीं पाता, उनके कर का परिमाण, जमाबंदी की पूरी जमा को कम न होने देने के अभिप्राय से, बढ़ा देता है ॥ कीजै चित सोई, तरे जिहिँ पतितनु के साथ । मेरे गुन-ौगुन-गननु गनौ न, गोपीनाथ ।। २२१ ॥ साथ= संघ, समूह ॥ ( अवतरण )-कोई भक्त भगवान् से कहता है ( अर्थ ) हे गोपीनाथ, मेरे गुणअवगुणों के गणों ( समूहों ) का मत गिनिए ( यह हिसाब मत लगाइए कि मेरे गुण अधिक हैं अथवा अवगुण ) [ क्योंकि यदि आपने ऐसा किया, तब तो मैं तर चुका ] । [ बस अपने ] चित्त मे [ आप ] सोई ( वही वस्तु अर्थात् दया ) कीजिए ( धारण कीजिए ), जिससे ( जिस दया से ) पतितों के साथ ( समूह) तरे हैं ।। | -- - - मृगनैनी दृग की फरक, उर-उछाह, तन-फूल ।। बिन हीं पिय-आगम उमगि, पलटन लगी दुकूल ।। २२२ ।। फूल = उभार ॥ आगम= आगमन ।। दुकूल = साड़ी इत्यादि । ( अवतरण )-आगमिष्यत्पतिका नायिका ने प्रियतम की अधाई का शुभ शकुन अनुमान कर के अपने भूषण, वसन का बदलना प्रारंभ कर दिया है । सखी-वचन सखी से | ( अ )-[ देखो, यह ]मृगनयनी ( मृग' के से नयनों से चारों ओर देखती हुई) . १. जिन ( ५ ) । -- --